नवम अध्याय
प्रश्न- ‘प्रभवः’, ‘प्रलयः’ और ‘स्थानम्’- इन तीनों पदों का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- समस्त जगत् की उत्पत्ति के कारण को ‘प्रभव’, स्थिति के आधार को ‘स्थान’ और प्रलय के कारण को ‘प्रलय’ कहते हैं। इस सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय भगवान् के ही संकल्प मात्र से होते हैं; इसलिये उन्होंने अपने को ‘प्रभव’, ‘प्रलय’ और ‘स्थान’ कहा है।
प्रश्न- ‘निधानम्’ पद का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- जिसमें कोई वस्तु बहुत दिनों के लिये रखी जाती हो, उसे ‘निधान’ कहते हैं। महाप्रयल में समस्त प्राणियों के सहित अव्यक्त प्रकृति भगवान् के ही किसी एक अंश में धरोहर की भाँति बहुत समय तक अक्रिय-अवस्था में स्थित रहती है, इसलिये भगवान् ने अपने को ‘निधान’ कहा है।
प्रश्न- ‘अव्ययम्’ विशेषण के सहित ‘बीजम्’ पद का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- जिसका कभी नाश न हो उसे ‘अव्यय’ कहते हैं। भगवान् समस्त चराचर भूतप्राणियों के अविनाशी कारण हैं। सबकी उत्पत्ति उन्हीं से होती है वे ही सबके परम आधार हैं। इसी से उनको ‘अव्यय बीज’ कहा है। सातवें अध्याय के दसवें श्लोक में उन्हीं को ‘सनातन बीज’ और दसवें अध्याय के उनतालीसवें श्लोक में ‘सब भूतों का बीज’ बतलाया गया है।
प्रश्न- इस श्लोक में भगवान् ने एक बार भी ‘अहम्’ पद का प्रयोग नहीं किया, इसका क्या कारण है?
उत्तर- अन्य श्लोकों में आये हुए क्रतु, यज्ञ, स्वधा, औषध, मन्त्र, घृत, ऋक्, यजु आदि बहुत- से भिन्न वस्तुओं के वाचक हैं। अतएव उन वस्तओं को अपना रूप बतलाने के लिये भगवान् ने उनके साथ ‘अहम्’ पद का प्रयोग किया है। परंतु इस श्लोक में जितने भी शब्द आये हैं, सब-के-सब भगवान् के विशेषण हैं; इसके अतिरिक्त पिछले श्लोक में आये हुए ‘अहम्’ के साथ इस श्लोक का अन्वय होता है। इसलिये इसमें ‘अहम्’ पद के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है।
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