नवम अध्याय
प्रश्न- यहाँ ‘इदम्’ पद किसका वाचक है? और जिसके कहने की प्रतिज्ञा की है, वह विज्ञान सहित ज्ञान क्या है?
उत्तर- सातवें, आठवें और नवें अध्याय में प्रभाव और महत्त्व आदि के रहस्य सहित जो निर्गुण-निराकार तत्त्व का तथा लीला, रहस्य, महत्त्व और प्रभाव आदि के सहित सगुण निराकार और साकार तत्त्व का एवं उनकी उपलब्धि कराने वाले उपदेशों का वर्णन हुआ है, उन सबका वाचक यहाँ ‘इदम्’ पद है और वही विज्ञान सहित ज्ञान है।
प्रश्न- इसे ‘गुह्यतमम्’ कहने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- संसार में और शास्त्रों में जितने भी गुप्त रखने योग्य रहस्य के विषय माने गये हैं, उन सबमें समग्ररूप भगवान् पुरुषोत्तम के तत्त्व, प्रेम, गुण, प्रभाव, विभूति और महत्त्व आदि के साथ उनकी शरणागति का स्वरूप सबसे बढ़कर गुप्त रखने योग्य है, यही भाव दिखलाने के लये इसे ‘बुह्यतम’ कहा गया हैं। पंद्रहवें अध्याय के बीसवें और अठारहवें अध्याय के चौंसठवें श्लोक में भी इस प्रकार के वर्णन को भगवान् ने ‘गुह्यतम’ कहा है।
प्रश्न- यहाँ ‘अशुभ’ शब्द किसका वाचक है और उससे मुक्त होना क्या है?
उत्तर- समस्त दुःखों का, उनके हेतुभूत कर्मों का, दुर्गुणों का, जन्म-मरणरूप संसार-बन्धन का और इस सबके कारणरूप अज्ञान का वाचक यहाँ ‘अशुभ शब्द है। इन सबसे सदा के लिये सम्पूर्णतया छूट जाना और परमानन्दस्वरूप परमेश्वर को प्राप्त हो जाना ही ‘अशुभ से मुक्त’ होना है।
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