श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
द्वितीय अध्याय
उत्तर- मधु नाम के दैत्य को मारने के कारण भगवान् श्रीकृष्ण को मधुसूदन कहते हैं और वैरियों का नाश करने के कारण वे अरिसूदन कहलाते हैं। इन दोनों नामों से सम्बोधित करते हुए इस श्लोक में ‘कथम्’ पद का प्रयोग करके अर्जुन ने आश्चर्य का भाव प्रकट किया है। अभिप्राय यह है कि आप मुझे जिन भीष्म और द्रोणादि के साथ युद्ध करने के लिये प्रोत्साहन दे रहे हैं वे न तो दैत्य हैं और न शत्रु ही हैं, वरं वे तो मेरे पूजनीय गुरुजन हैं; फिर अपने स्वाभाविक गुणों के विरुद्ध आप मुझे गुरुजनों के साथ युद्ध करने के लिये कैसे कह रहे हैं। यह घोर पापकर्म मैं कैसे कर सकूँगा? प्रश्न- ‘इषुभिः’ पद का क्या भाव है? उत्तर- ‘इषु’ कहते हैं बाण को। यहाँ ‘इषुभिः’ पद का प्रयोग करके अर्जुन ने यह भाव दिखलाया है कि जिन गुरुजनों के प्रति वाणी से हलके वचनों का प्रयोग भी महान् पातक बतलाया गया है, उन पर तीक्ष्ण बाणों का प्रहार करके मैं उनसे लड़ कैसे सकूँगा। आप मुझे इस घोर पापाचार में क्यों प्रवृत्त कर रहे हैं? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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