श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
अष्टम अध्याय
उत्तर- लोगों का समझना भी एक प्रकार से ठीक ही है, क्योंकि उस समय उस-उस कालाभिमानी देवताओं के साथ तत्काल सम्बन्ध हो जाता है। अतः उस समय मरने वाला योगी गन्तव्य स्थान तक शीघ्र और सुगमता से पहुँच जाता है। पर इससे यह नहीं समझ लेना चाहिये कि रात्रि के समय मरने वाला तथा कृष्ण पक्ष में और दक्षिणायन के छः महीनों में मरने वाला अर्चिमार्ग से नहीं जाता। बल्कि यह समझना चाहिये कि चाहे जिस समय मरने पर भी, वह जिस मार्ग से जाने का अधिकारी होगा, उसी मार्ग से जायगा। इतनी बात अवश्य है कि यदि अर्चिमार्ग का अधिकारी रात्रि में मरेगा तो उसका दिन के अभिमानी देवता के साथ सम्बन्ध दिन के उदय होने पर ही होगा, इस बीच के समय में वह ‘अग्निः’ के अभिमानी देवता के अधिकार में रहेगा। यदि कृष्ण पक्ष में मरेगा तो उसका शुक्लपक्षाभिमानी देवता से सम्बन्ध शुक्ल पक्ष आने पर ही होगा, इसके बीच के समय में वह दिन के अभिमानी देवता के अधिकार में रहेगा। इसी तरह यदि दक्षिणायन में मरेगा तो उसका उत्तरायणाभिमानी देवता से सम्बन्ध उत्तरायण का समय आने पर ही होगा, इसके बीच के समय में वह शुक्लपक्षाभिमानी देवता के अधिकार में रहेगा। इसी प्रकार दक्षिणायन मार्ग के अधिकारी के विषय में भी समझ लेना चाहिये। प्रश्न- यहाँ ‘योगिनः’ पद के प्रयोग का क्या अभिप्राय है? उत्तर- ‘योगिनः’ पद के प्रयोग से यह बात समझनी चाहिये कि जो साधारण मनुष्य इसी लोक में एक योनि से दूसरी योनि में बदलने वाले हैं या जो नरकादि में जाने वाले हैं, उनकी गति का यहाँ वर्णन नहीं है। यहाँ जो ‘शुक्ल’ और ‘कृष्ण’ इन दो मार्गों के वर्णन का प्रकरण है, वह यज्ञ, दान, तप आदि शुभकर्म और उपासना करने वाले श्रेष्ठ पुरुषों की गति का ही वर्णन है। प्रश्न- ‘प्रयाताः’ पद का क्या अभिप्राय है? और भगवान् ने यहाँ ‘वक्ष्यामि’ पद से क्या कहने की प्रतिज्ञा की है? उत्तर- ‘प्रयाताः’ पद जाने वालों का वाचक है। जो मनुष्य अन्तकाल में शरीर को छोड़कर उच्च लोकों में जाने वाले हैं, उनका वर्णन करने के उद्देश्य से इसका प्रयोग हुआ है। जिस रास्ते से गया हुआ मनुष्य वापस नहीं लौटता और जिस रास्ते से गया हुआ वापस लौटता है, उन दोनों रास्तों का क्या भेद है, वे दोनों रास्ते कौन-कौन से है, तथा उन रास्तों पर किन-किन का अधिकार है- ‘वक्ष्यामि’ पद से भगवान् ने इस सब बातों के कहने की प्रतिज्ञा की है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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