श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
सप्तम अध्याय
उत्तर- जीवों से भगवान् की अत्यन्त विशेषता दिखलाने के लिये ‘तु’ का प्रयोग किया गया है। प्रश्न- ‘कश्चन’ पद किसका वाचक है? और अर्थ में उसके साथ ‘श्रद्धा-भक्तिरहित पुरुष’ यह विशेषण जोड़ने का क्या अभिप्राय है? उत्तर- इसी अध्याय के तीसरे श्लोक में भगवान् कह चुके हैं ‘कोई एक मुझे तत्त्व से जानता है’ और इसी अध्याय के तीसवें श्लोक में भी कहा है-‘अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ सहित मुझको जानते हैं।’ इसके अतिरिक्त ग्यारहवें अध्याय के चौवनवें श्लोक में भी भगवान् ने कहा है- ‘अनन्य भक्ति के द्वारा मनुष्य मुझको तत्त्व से जान सकता है, मुझे देख सकता है और मुझमें प्रवेश भी कर सकता है।’ इसलिये यहाँ यह समझना चाहिये कि भगवान् के भक्तों के अतिरिक्त जो साधारण मूढ़ मनुष्य हैं, उनमें भगवान् को कोई भी नहीं जान पाता। ‘कश्चन’ पद ऐसे ही मनुष्यों को लक्ष्य करता है और इसी भाव को स्पष्ट करने के लिये अर्थ में ‘श्रद्धा-भक्तिरहित पुरुष’ विशेषण लगाया गया है। अगले श्लोक में राग-द्वेषनजनित द्वन्द्वमोह को ही न जानने का कारण् बतलाया है, इससे भी यही सिद्ध है कि रागद्वेषरहित भक्तगण भगवान् को जान सकते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |