श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
सप्तम अध्याय
चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन ।
उत्तर- जन्म-जन्मान्तर से शुभ कर्म करते-करते जिनका स्वभाव सुधरकर शुभ कर्मशील बन गया है और पूर्वसंस्कारों के बल से अथवा महत्संग के प्रभाव से जो इस जन्म में भी भगवदाज्ञानुसार कर्म ही करते हैं- उन शुभ कर्म करने वालों को ‘सुकृती’ कहते हैं। शुभ कर्मों से भगवान् के प्रभाव और महत्त्व का ज्ञान होकर भगवान् में विश्वास बढ़ता है और विश्वास होने पर भजन होता है। इससे यह सूचित होता है कि ‘कुकृतिनः’ विशेषण का सम्बन्ध चारों प्रकार के भक्तों से है अर्थात् भगवान् को विश्वासपूर्वक भजने वाले सभी भक्त ‘सुकृती’ ही होते हैं, फिर चाहे वे किसी भी हेतु से भजें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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