सप्तम अध्याय
प्रश्न- ‘मदाश्रयः’ किसको कहते हैं?
उत्तर- जो पुरुष संसार के सम्पूर्ण आश्रयों का त्याग करके समस्त आशाओं और भरोसों से मुँह मोड़कर एकमात्र भगवान् पर ही निर्भर रहता है और सर्वशक्तिमान् भगवान् को ही परम आश्रय तथा परम गति जानकर एकमात्र उन्हीं के भरोसे पर सदा के लिये निश्चिन्त हो गया है, उसे भगवान् ‘मदाश्रयः’ कहते हैं।
प्रश्न- ‘योगं युन्जन्’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर- यहाँ भक्तियोग का प्रकरण है। अतएव मन और बुद्धि को अचलभाव से भगवान् में स्थिर करके नित्य-निरन्तर श्रद्धा-प्रेमपूर्वक उनका चिन्तन करना ही ‘योग युन्जन्’ का अभिप्राय है।
प्रश्न- समग्र भगवान् को संशय रहित जानने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- भगवान् इतने और उतने ही नहीं हैं; अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड सब उन्हीं में ओत-प्रोत हैं, सब उनके ही स्वरूप हैं। इन ब्रह्माण्डों में और इनके परे जो कुछ भी है, सब उन्हीं में है। वे नित्य हैं, सत्य हैं, सनातन हैं, वे सर्वगुणसम्पन्न, सर्वशक्तिमान्, सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, सर्वाधार और सर्वरूप हैं तथा स्वयं ही अपनी योगमाया से जगत् के रूप में प्रकट होते हैं। वस्तुतः उनके अतिरिक्त अन्य कुछ है ही नहीं; व्यक्त-अव्यक्त और सगुण-निर्गुण सब वे ही हैं। इस प्रकार उन भगवान् के स्वरूप को निर्भान्त और असन्दिग्ध रूप से समझ लेना ही समग्र भगवान् को संशयरहित जानना है।
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