श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
प्रथम अध्याय
उत्तर- ‘कुलघाती’ उनको कहा गया है, जो युद्धादि में अपने कुल का संहार करते हैं और ‘कुलस्य’ पद के साथ ‘च’ अव्यय का प्रयोग करके यह सूचित किया गया है कि वर्णसंकर सन्तान केवल उन कुलघातियों को ही नरक पहुँचाने में कारण नहीं बनती, वह उनके समस्त कुल को भी नरक में ले जाने वाली होती है। प्रश्न- ‘लुप्त हुई पिण्ड और जल की क्रिया वाले इनके पितरलोग भी अधोगति को प्राप्त हो जाते है’ इसका क्या भाव है? उत्तर- श्राद्ध में जो पिण्डदान किया जाता है और पितरों के निमित ब्राह्मण-भोजनादि कराया जाता है वह ‘पिण्डक्रिया’ है और तर्पण में जो जलांजलि दी जाती है वह ‘उदकक्रिया’ है; इन दोनों के समाहार को पिण्डोदक क्रिया कहते हैं। इन्हीं का नाम श्राद्ध-तपर्ण है। शास्त्र और कुल-मर्यादा को जानने-माननेवाले लोग श्राद्ध-तर्पण किया करते हैं। परंतु कुलघातियों के कुल में धर्म के नष्ट हो जाने से जो वर्णसंकर उत्पन्न होते हैं, वे अधर्म से उत्पन्न और अधर्माभिभूत होने से प्रथम तो श्राद्ध-तर्पणादि क्रियाओं को जानते ही नहीं, कोई बतलाता भी है तो श्रद्धा न रहने से करते नहीं और यदि कोई करते भी हैं तो शास्त्र-विधि के अनुसार उनका अधिकार न होने से वह पितरों को मिलती नहीं। इस प्रकार जब पितरों को सनतान के द्वारा पिण्ड और जल नहीं मिलता तब उनका पतन हो जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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