पहला अध्याय
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1
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प्रथम अध्याय का नाम और संक्षेप
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1
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2
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प्रथम अध्याय का सम्बन्ध- गीता के उपक्रम में महाभारत-युद्ध का प्रारम्भिक इतिहास
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2
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3
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धृतराष्ट्र का प्रश्न
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4
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4
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धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र का परिचय तथा दुर्योधन का द्रोणाचार्य के पास जाना
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5
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5
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दुर्योधन द्वारा पाण्डव सेना का वर्णन
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6
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6
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युयुधान, विराट और द्रुपद का परिचय
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7
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7
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धृष्टकेतु, चेकितान, काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज, शैब्य, युधामन्यु, अभिमन्यु तथा द्रौपदी के पुत्रों के परिचय
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10
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8
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महारथी का लक्षण तथा द्रोण, भीष्म, कर्ण, कृप, अश्वत्थामा, विकर्ण और भूरिश्रवा आदि कौरवपक्षीय प्रमुख वीरों का परिचय
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11
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9
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दुर्योधन द्वारा अपने पक्ष के वीरों की प्रशंसा तथा भीष्म के द्वारा शंखनाद
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15
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10
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अर्जुन के विशाल रथ, ध्वजा, हृशीकेश नाम, पाञ्चजन्य एवं देवदत्त शंख का एवं शिखण्डी का परिचय और उभय पक्ष के वीरों द्वारा की हुई शंख ध्वनि का वर्णन
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17
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11
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अर्जुन के अनुरोध से भगवान का दोनों सेनाओं के बीच में रथ को ले जाना और अर्जुन का सबको देखना
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24
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12
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दोनों ओर के स्वजनों को देखकर उनके मरण की आशंका से अर्जुन का शोकाकुल होना और कुलनाश, कुलधर्मनाश तथा वर्णसंकरता के विस्तार आदि दुष्परिणामों को बतलाते हुए धनुष-बाण छोड़कर बैठ जाना
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30
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13
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अध्याय की समाप्ति पर पुष्पि का- तात्पर्य
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49
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दूसरा अध्याय
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14
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प्रथम अध्याय का नाम संक्षेप और सन्दर्भ
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50
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15
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भगवान के द्वारा उत्साह दिलये जाने पर भी अर्जुन का युद्ध के लिये तैयार न होना और किंकर्तव्यविमूढ होकर भगवान से उचित शिक्षा देने की प्रार्थना करते हुए युद्ध न करने का निश्चय करके बैठ जाना
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53
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16
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भगवान के द्वारा आत्मतत्त्व का निरूपण और सांख्ययोग की दृष्टि में अर्जुन को युद्ध के लिये प्रोत्साहन मिलना
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64
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17
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क्षत्रिय धर्म के अनुसार धर्म-युद्ध की उपादेयता और आवश्यकता का वर्णन करके भगवान अर्जुन को युद्ध के लिये उत्साह दिलाना
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90
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18
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सकाम कर्मों की हीनता और निष्काम कर्मों की श्रेष्ठता का वर्णन करते हुए अर्जुन को कर्मयोग के लिये उत्साहित करना
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98
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19
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योग और योगी के विभिन्न अर्थों में प्रयोग
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118
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20
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अर्जुन के पूछने पर भगवान के द्वारा स्थिर-बुद्धि पुरुषों के लक्षण, स्थिर-बुद्धिता के साधन और फल का निरूपण
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123
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तीसरा अध्याय
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21
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अध्याय का नाम संक्षेप और सम्बन्ध
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154
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22
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अर्जुन के पूछने पर सांख्य और कर्मयोग दो निष्ठाओं का वर्णन करते हुए अर्जुन को कर्तव्य कर्म करने के लिये आदेश देना
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156
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23
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यज्ञार्थ कर्म की विशेषता, यज्ञचक्र का वर्णन तथा कर्तव्यपालन पर जोर
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169
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24
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ज्ञानी के लिये कर्म की कर्तव्यता न होने पर भी लोक-संग्राहार्थ ज्ञानवान और भगवान के लिये भी कर्म की आवश्यकता एवं अज्ञानी और ज्ञानी के लक्षण तथा राग-द्वेषरहित कर्म के लिये प्रेरण। राजा दिलीप, शिवि और प्रह्लाद का दृष्टान्त
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182
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25
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अर्जुन के प्रश्न के उत्तर में भगवान का काम के स्वरूप, निवास स्थान आदि का वर्णन करते हुए उसे मारने के लिये अर्जुन को आज्ञा देना
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217
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चौथा अध्याय
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26
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अध्याय का नाम, संक्षेप और सम्बन्ध
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231
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27
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भगवान के द्वारा कर्मयोग की प्राचीन परम्परा का दिग्दर्शन
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233
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28
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अर्जुन के प्रश्न पर भगवान के द्वारा अवतार रहस्य का वर्णन, चारों वर्णों की सृष्टि ईश्वरकृत है, यह बतलाते हुए कर्म के रहस्य और महापुरुषों की महिमा का वर्णन
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237
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29
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विविध प्रकार के यज्ञों का वर्णन
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268
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30
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ज्ञान की महिमा
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292
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पाँचवा अध्याय
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31
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अध्याय का नाम, संक्षेप सम्बंध
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312
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32
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अर्जुन के प्रश्न के उत्तर में भगवान के द्वारा सांख्ययोग और कर्मयोग का निर्णय, सांख्ययोगी और कर्मयोगी के लक्षण तथा महत्त्व का वर्णन
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313
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33
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सांख्ययोग और सांखयोगी स्थिति का निरूपण
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331
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34
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दोनों निष्ठाओं के साधकों के लिये ध्यानयोग का वर्णन तथा भगवान को यज्ञादि का भोक्ता, सर्वलोकमहेश्वर तथा सुहृद जान लेने पर परमशान्ति की प्राप्ति का वर्णन
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360
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छठा अध्याय
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35
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अध्याय का नाम, संक्षेप और सम्बंध
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369
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36
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कर्मयोगी की प्रशंसा और योगारूढ पुरुष का लक्षण बतलाते हुए आत्मोद्धार के लिये प्रेरणा तथा भगवत्प्राप्त पुरुषों के लक्षण
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371
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37
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ध्यानयोग का फलसहित वर्णन
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386
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38
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अर्जुन द्वारा किये गये प्रश्नों के उत्तर में मन के निग्रह और योगभ्रष्ट पुरुषों की गति का वर्णन
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432
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39
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योगी की महिमा, योगी बनने के लिये आज्ञा और अन्तरात्मा से भगवान को भजने वाले योगी की सर्वश्रेष्ठता
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455
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सातवाँ अध्याय
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40
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षट्क का स्पष्टीकरण, अध्याय का नाम, संक्षेप और सम्बन्ध
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462
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41
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विज्ञान सहित ज्ञान की प्रशंसा, भगवत्स्वरूप के तत्त्वज्ञान की दुर्लभता, भगवान की अपरा एवं परा प्रकृति का स्वरूप तथा उनसे समस्त भूतों की उत्पत्ति, भगवान की सबके प्रति महकारणता एवं भगवान के समग्र स्वरूप का वर्णन
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464
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42
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आसुरी स्वभाव के मनुष्यों की निन्दा, भगवान के सब प्रकार के भक्तों की प्रशंसा तथा अन्य देवों की उपासना का वर्णन
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482
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43
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भगवान के प्रभाव को न समझने का कारण और समग्ररूप को समझने वाले पुरुषों की प्रशंसा
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500
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आठवाँ अध्याय
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44
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अध्याय का नाम, संक्षेप और सम्बंध
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513
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45
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अर्जुन के प्रश्न के उत्तर में भगवान के द्वारा ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ के स्वरूप तथा अन्तकाल की गति का महत्त्वयुक्त निरूपण
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514
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46
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सगुण-निराकार स्वरूप का चिन्तन करने वाले योगियों की निर्गुण-निराकार ब्रह्म के उपासकों की अन्तकालीन गति का वर्णन
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529
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47
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भगवान की भक्ति का महत्त्व, कल्पवर्णन तथा सभी उपासकों को प्राप्त होने वाले परमधाम का भक्तिरूपी उपायसहित वर्णन
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541
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48
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शुक्ल और कृष्ण मार्ग का वर्णन
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555
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नवाँ अध्याय
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49
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अध्याय का नाम, संक्षेप तथा सम्बन्ध
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571
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50
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विज्ञानयुक्त ज्ञान भगवान के ऐश्वर्य का प्रभाव और जगत की उत्पत्ति का वर्णन
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572
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51
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भगवान के प्रभाव को न जानने के कारण उनका तिरस्कार करने वालों की निन्दा, भक्ति की महिमा, प्रभावसहित समग्ररूप का वर्णन और स्वर्गकामी पुरुषों की गति का निरूपण
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588
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52
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अनन्य भक्ति की महिमा
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611
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दसवाँ अध्याय
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53
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अध्याय का नाम, संक्षेप और सम्बन्ध
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656
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54
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भगवान की विभूति और योगशक्ति का कथन तथा उनके जानने का फल
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657
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55
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फल और प्रभावसहित भक्ति का कथन
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669
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56
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अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति, विभूति तथा योगशक्ति का वर्णन करने के लिये प्रार्थना
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675
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57
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भगवान के द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का वर्णन
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684
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ग्यारहवाँ अध्याय
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58
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अध्याय का नाम, संक्षेप और सम्बन्ध
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710
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59
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विश्वरूप का दर्शन कराने के लिये अर्जुन की प्रार्थना
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711
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60
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भगवान के द्वारा विश्वरूप का वर्णन और दिव्यदृष्टि प्रदान
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717
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61
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संजय द्वारा भगवान के विश्वरूप का वर्णन
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723
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62
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अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का दर्शन और स्तवन
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729
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63
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भगवान के द्वारा अपने प्रभाव का वर्णन और अर्जुन को युद्ध के लिये उत्साह प्रदान
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748
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64
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अर्जुन के द्वारा भगवान का स्तवन और चतुर्भुज दिखलाने के लिये अर्जुन की प्रार्थना
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754
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65
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भगवान के द्वारा विश्वरूप की महिमा का कथन एवं चतुर्भुज तथा सौम्यरूप के दर्शन करवाना
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772
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66
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भगवान के द्वारा चतुर्भुजरूप की महिमा और अनन्यभक्ति का निरूपण
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776
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बारहवाँ अध्याय
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67
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अध्याय का नाम, संक्षेप और सम्बन्ध
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784
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68
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अर्जुन के प्रश्न करने पर भगवान के द्वारा साकार और निराकार स्वरूप के उपासकों की उत्तमता का निर्णय तथा भगवत्प्राप्ति के विविध साधनों का वर्णन
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785
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69
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भगवत्प्राप्त भक्त पुरुषों के लक्षण
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806
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70
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उच्च श्रेणी के भगवद्भक्त साधकों का वर्णन
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821
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तेरहवाँ अध्याय
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71
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अध्याय का नाम, संक्षेप और सम्बन्ध
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823
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72
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क्षेत्र, क्षेत्रज्ञ तथा ज्ञान-ज्ञेय का निरूपण
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824
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73
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ज्ञान सहित प्रकृति-पुरुष का वर्णन
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853
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चौदहवाँ अध्याय
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74
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अध्याय का नाम, संक्षेप और सम्बन्ध
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881
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75
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ज्ञान का महत्त्व और प्रकृति पुरुष के द्वारा सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन
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882
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76
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सत्त्व, रज, तम- तीनों गुणों का विविध प्रकार से वर्णन
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885
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77
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गुणातीत-अवस्था की प्राप्ति के उपाय तथा गुणातीत पुरुष के लक्षणों और भगवान की महत्ता का वर्णन
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903
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पन्द्रहवाँ अध्याय
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78
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अध्याय का नाम, संक्षेप और सम्बन्ध
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919
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79
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संसार -वृक्ष का वर्णन, भगवत्प्राप्ति के साधन और परमधाम का निरूपण
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920
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80
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जीवत्मा का प्रकरण
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929
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81
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भगवान प्रभाव एवं स्वरूप का प्रकरन तथा क्षर, अक्षर एवं पुरुषोत्तम का निरूपण
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939
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सोलहवाँ अध्याय
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82
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अध्याय का नाम, संक्षेप और सम्बन्ध
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950
|
83
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फल सहित दैवी और आसुरी सम्पत्ति का वर्णन
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951
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84
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आसुरी सम्पत्ति वाले मनुष्यों के लक्षण और उनकी अधोगति का निरूपण
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959
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85
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काम, क्रोध और लोभ नरक-द्वारों के त्याग की आज्ञा के साथ-साथ शास्त्रानुकुल कर्म करने के लिये प्रेरणा
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975
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सतरहवाँ अध्याय
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86
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अध्याय का नाम संक्षेप और सम्बन्ध
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980
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87
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श्रद्धा और शास्त्रविपरीत घोर तप करने वालों का वर्णन
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981
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88
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तीनों गुणों के अनुसार, आहार, यज्ञ, तप और दान के पृथक-पृथक भेदों का वर्णन
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988
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89
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ॐ तत्सत् के प्रयोग की व्याख्या
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1010
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अठारहवाँ अध्याय
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90
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अध्याय का नाम संक्षेप और सम्बन्ध
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1016
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91
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अर्जुन के प्रश्न के उत्तर में भगवान के द्वारा त्याग के स्वरूप का निर्णय
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1018
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92
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सांख्य-सिद्धान्त के अनुसार कर्मों के हेतुओं का निरूपण
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1032
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93
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तीनों के गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेदों का वर्णन
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1041
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94
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फलसहित वर्णधर्म का निरूपण
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1070
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95
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ज्ञान-निष्ठा का निरूपण
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1084
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96
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भक्तिसहित कर्मयोग का वर्णन और शरणागति की महिमा तथा अर्जुन अपनी शरण में आने के लिये महिमा तथा अर्जुन को अपनी शरण में आने के लिये भगवान का आदेश
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1094
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97
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गीता का माहात्मय
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1114
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