श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
अष्टादश अध्याय
उत्तर- उसे पुनः सुनने के लिये कहकर यह भाव दिखलाया गया है कि अब जो बात मैं तुम्हें बतलाना चाहता हूँ, उसे पहले भी कह चुका हूँ[1]; किंतु तुम उसे विशेष रूप से धारण नहीं कर सके, अतएव उस अत्यन्त महत्त्व के उपदेश को समस्त उपदेश में से अलग करके मैं तुम्हें फिर बतलाता हूँ। तुम उसे सावधानी के साथ सुनकर धारण करो। प्रश्न- ‘दृढम्’ के सहित ‘इष्टः’ पद से क्या भाव दिखलाया है? उत्तर- तिरसठवें श्लोक में भगवान ने अर्जुन को अपने कर्तव्य का निश्चय करने के लिये स्वतन्त्र विचार करने को कह दिया, उसका भार उन्होंने अपने ऊपर नहीं रखा; इस बात को सुनकर अर्जुन के मन में उदासी छा गयी, वे सोचने लगे कि भगवान ऐसा क्यों कह रहे हैं; क्या मेरा भगवान पर विश्वास नहीं है, क्या मैं इनका भक्त और प्रेमी नहीं हूँ। अतः ‘दृढम्’ और ‘इष्टः’ इन दोनों पदों से भगवान अर्जुन का शोक दूर करने के लिये उन्हें उत्साहित करते हुए यह भाव दिखलाते हैं कि तुम मेरे अत्यन्त प्रिय हो, तुम्हारा और मेरा प्रेम का सम्बन्ध अटल है; अतः तुम किसी तरह का शोक मत करो। प्रश्न- ‘ततः’ अव्यय के प्रयोग का तथा मैं तुझसे परमहित की बात कहूँगा, इस कथन का क्या भाव है? उत्तर- ‘ततः’ पद यहाँ हेतुवाचक है, इसका प्रयोग करके और अर्जुन को उसके हित का वचन कहने की प्रतिज्ञा करके भगवान् ने यह भाव दिखलाया है कि तुम मेरे घनिष्ट प्रेमी हो; इसीलिये मैं तुमसे किसी प्रकार का छिपाव न रखकर गुप्त से भी अति गुप्त बात तुम्हारे हित के लिये, तुम्हारे सामने प्रकट करूँगा और मैं जो कुछ भी कहूँगा, वह तुम्हारे लिये अत्यन्त हित की बात होगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 9। 34;12।6-7;18।56-57
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