श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
स्वयं-भगवान कब और क्यों आते हैं?वे छिपकर भी अपनी साधना नहीं कर सकते। मनुष्यों में विपरीतदर्शिनी तामसी बुद्धि छा जाती है। वे विनाश में विकास देखते हैं तथा सर्वथा इन्द्रिय-भोगपरायण होकर मानवता के नाम पर दानवता के कुत्सित, क्रूर कर्म करने लगते हैं। इस प्रकार भौतिक बलशाली दुर्वृत्तों, दुराचारियों या दुष्कर्मियों के अनर्गल अनाचार तथा दारुण अत्याचार एवं साधुहृदय मानवों की करुण पुकार जब चरम सीमापर पहुँच जाती है, तब भगवान का अवतार हुआ करता है। विशेषतः स्वयं-भगवान का तो भूतलपर तभी अवतरण होता है, जब यहाँ ऐसे दुष्कृतकारियों का वध आवश्यक होता है, जिनको भगवान के हाथों देहमुक्त होकर भगवद्धाम में जाना हो और उन साधुपुरुषों की मर्मपीड़ा को हरण करना अनिवार्य हो जाय जो काम-कलुषित विष-जगत् से अत्यन्त पीड़ित होकर विशुद्ध प्रेम चाहते हों और अपने परम प्रेमास्पद की विरह-ज्वाला से अत्यन्त संतप्त हो उठे हो। यह सभी जानते हैं कि कंस के राज्य में देश नितान्त दुर्दशाग्रस्त हो गया था। प्रकृति इनते नीचे स्तर पर आ गयी थी कि उसमें जडता, नास्तिकता, असत्य, अधर्म, अन्याय, अत्याचार, अनाचार और व्यभिचार का ताण्डव नृत्य होने लगा था। कंस ने भगवान के पहले पिता-माता वसुदेव-देवकी के हाथों-पैरों में लोहे की हथकड़ी-बेड़ी पहनाकर उन्हें कारागार में बंद करके तो अत्याचार की पराकाष्ठा ही कर दी थी! कंस पूर्ण तमोगुण से आच्छादित था, पर बुरे लोग भी कभी-कभी प्रशंसा आदि पाने के लिये सत्कर्म में प्रवृत्त हो जाते हैं। इसी के अनुसार क्रूरहृदय कंस देवकी-वसुदेव का विवाह हो जानेपर उन्हें पहुँचाने के लिये स्वयं रथ चलाकर ले जा रहा था; पर ज्यों ही उसने आकाशवाणी सुनी कि स्वार्थ में आघात लगने की आशंका से वह तिलमिला उठा और तलवार निकालकर बहिन देवकी का वध करने को तैयार हो गया! वसुदेवजी के बहुत समझाने पर माना, पर आखिर उनको कारागार में बंद कर ही दिया। फिर तो उसने दुर्दान्त असुरमण्डली से परामश करके भाँति-भाँति के भीषण अत्याचार आरम्भ कर दिये। अवनी देवी उसके अत्याचारों से अकुला उठी और गौ के रूप में करुण चीत्कार करती हुई ब्रह्माजी के पास पहुँची। ब्रह्माजी भगवान शिव तथा सुर-समूह को साथ लेकर क्षीरसागर के तटपर गये और क्षीराब्धिशायी भगवान का स्तवन करने लगे। तब क्षीराब्धिशायी भगवान ने आकाशवाणी में कहा- |
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