श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
लीला-पुरुषोत्तम का प्राकट्यबस, सारे व्रज में समाचार फैल गया। देखते-ही-देखते नन्दबाबा के महल में भीड़ उमड़ पड़ी। प्रातः काल हुआ। सभी आनन्द में नृत्य करते हुए दूध, दही, दूर्वा, मक्खन, हरिद्रा ले-लेकर चल पड़े अनन्त आनन्द-माधुर्य-सौन्दर्य का दर्शन कर कृतार्थ होने के लिये। भगवान चाहे दैत्यों का दलन करने के लिये प्रकट होते हों, चाहे अधर्म का नाश करके धर्म की स्थापना करने के लिये; पर जिन्होंने उस सौन्दर्य-सुधा-राशि का तनिक-सा भी पान किया है, वे तो यही समझते हैं कि हमारे लिये ही भगवान का यह दिव्य प्राकट्य है। भगवान ने असुरोद्धार, गोवर्धनधारण, इन्द्र-दर्प-दलन, ब्रह्ममोहभंग, कंसोद्वार, पाण्डव-संरक्षण औद दिव्य गीतोपदेश आदि बहुत-सी लीलाएँ कीं। उनकी लीला में कोई ऐसा आदर्श कार्य नहीं, जो छूटा हो। इसीलिये उनका नाम ‘लीलापुरुषोत्तम’ है। आज हम उन्हीं लीलापुरुषोत्तम के प्राकट्य-काल में उनका स्मरण करके धन्य हो रहे हैं और चाहते हैं कि यही चिदानन्दमयी अनन्त रूपराशि हमारे जीवन का एकमात्र ध्येय और साध्य बनी रहे। |
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