श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
व्यास, नारद आदि सर्वथा निग्र्गन्थ आत्माराम ऋषि-मुनि, जिनका हृदय भगवान की मंगलमयी आनन्दमयी लीला-तरंगों से विक्षुब्ध मधुर मनोहर सर्वाकर्षक सच्चिदानन्दमय साकार स्वरूप का दर्शन करने के लिये समुत्सुक था और जिनके हृदय भगवान के भगवत्स्वरूप दिव्य लोकोत्तर गुणगणों से आकर्षित होकर उनकी अहैतु की भक्ति से भरपूर हो रहे थे; प्रतीक्षा कर रहे थे वे ऐश्वर्य-मिश्रित माधुर्यभक्ति-सम्पन्न परम भाग्यवान देवकी-वसुदेव, जो पूर्वजन्म में पुत्ररूप में प्रकट होने के लिये स्वयं भगवान से वरदान प्राप्त कर चुके थे; प्रतीक्षा कर रहे थे वे दिव्य वात्सल्य रसपूर्ण हृदय नित्य पिता-माता नन्द-यशोदा, व्रज की वे वात्सल्यमयी गोपमाताएँ, निर्मल सख्यरस-सम्पत्र व्रज के वे महाभाग्यवान ग्वाल-बाल, जो केवल इसी परम सुख के लिये भूमि पर अवतीर्ण हुए थे; प्रतीक्षा कर रही थीं वे परम भाग्यवती गौएँ एवं गोवत्सादि, जिनके रूप मे देवता, ऋषि-मुनि तथा महान पुण्यजन अवतीर्ण हुए थे और स्वयं भगवान जिनका स्तन्य पानकर, जिन्हे वन-वन चराकर, जिनके साथ घूम-घूमकर परम दिव्य सुख देना चाहते थे; और प्रतीक्षा कर रही थीं आकुल हृदय से वे अचिन्त्यानन्तसौभाग्यशालिनी नित्यसिद्धा, साधनसिद्धा, कल्पों तक कठोर तपस्या करके वरदान से प्राप्त गोपी शरीरवाली श्रुतियाँ, स्वयं ब्रह्मविद्या, बड़े-बड़े ऋषि-मुनि तथा मिथिला की वे गोपीभाव-प्राप्त पुरन्ध्रियाँ, जो स्व-सुख-वाच्छासे सर्वथा रहित, सर्वत्यागमय परम मधुर प्रीति-रसके द्वारा परमानन्दमय सचिदानन्दघन परम प्रियतम श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण को अनन्त सुख पहुँचाने के लिये एक-एक पल युगों के समान बिता रही थीं। इनके अतिरिक्त और न जाने कितने प्राणी किन-किन विविध विचित्र भावों को लेकर जिनकी प्रतीक्षा कर रहे थे, वे परात्पर सच्चिदानन्द परब्रह्म अवतारी ‘स्वयं भगवान’ अपनी समस्त स्वरूपभूता दिव्य शक्तियों को, समस्त दिव्य अंशों को तथा सम्पूर्ण अवतारों एवं अवतार-कारणों को लेकर प्रकट हुए कंस के कारागार में अद्रनिशा के समय अखिल विश्वब्रह्माण्डों की समस्त प्रकति आनन्दोन्मत्त होकर अपने सम्पूर्ण अंगों से मधुरतम नृत्य करने लगी- |
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