श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा का स्वरूप
यह बोलचाल की राधा दूसरी है। राधा क्या चीज है? चैतन्यचरितामृत में इसका उत्तर है, बड़ा सुन्दर है— मनन करने योग्य है। वहाँ ग्रन्थकार कहते हैं— राधा भगवान् की आह्लादिनी शक्ति हैं। ‘कृष्ण के आह्लादे, ताते नाम आह्लादिनी।’ श्रीकृष्ण को आह्लादित करती हैं, इससे उनका नाम आह्लादिनी है और उसी शक्ति के द्वारा उस सुख का आस्वाद वे स्वयं करती हैं— श्रीकृष्ण को आह्लादित करके स्वयं आह्लादित होती हैं। ‘तत्सुखे सुखित्वम्।’ यह प्रेम का स्वरूप है। बड़ी सुन्दर चीज है। जहाँ पर अपने सुख की वान्छा है— किसी के द्वारा, भगवान् के द्वारा भी; मोक्ष की भी; वहाँ प्रेम नहीं है, काम है। ‘निजेन्द्रियप्रीति इच्छा, तार नाम काम।’ कामना और प्रेम में यही अन्तर है। कामना चाहती है कि अपना सुख और प्रेम चाहता है प्रेमास्पद का सुख। यही भेद है। इसीलिये गोपियों का ‘काम’ शब्द प्रेम का ही वाचक है— गोपियों का काम— काम नहीं था। उसका नाम काम है, पर वहाँ काम-गन्ध-लेश भी नहीं है। वह दिव्य प्रेम है। जो आह्लादिनी शक्ति है, वह श्रीकृष्ण को आह्लादित करती है और ‘आह्लादनीर सार अंश प्रेम तार नाम। जो उसका सार अंश है, उसका नाम प्रेम है; वह प्रेम आनन्द-चिन्मयरस है। और इस प्रेम का जो परम सार है, वह है महाभाव। इसी महाभाव की मूर्तिमती प्रतिमा, महाभावरूपा ये राधारानीजी हैं। एक मूर्तिमती प्रेम-देवी हैं। कहते हैं कि यह प्रेम का जो सार है, वही राधा बन गया है। ये श्रीकृष्ण की परमोत्कृष्ट प्रेयसी हैं। श्रीकृष्णवाच्छा पूर्ण करना ही इनके जीवन का कार्य है। इनमें काम-क्रोध, बन्ध-मोक्ष, भुक्ति-मुक्ति- कुछ भी नहीं है। श्रीकृष्ण की इच्छा को पूर्ण करना— यही इनका स्वरूप-स्वभाव है। यह बड़ी भारी अनोखी चीज है। भगवान इच्छारहित हैं। यह प्रेम का ही जादू है, यह गोपी-प्रेम का जादू है कि जो सर्वथा इच्छा रहित हैं, वे इच्छा वाले बन जाते हैं। जिनको किसी वस्तु का अभाव नहीं, वे अभावग्रस्त बन जाते हैं। वे इस रस के लिये मत वाले बन जाते हैं। ये महाभाव वाली गोपी श्रीराधा हैं। ललितादि सखियाँ इनकी कायव्यूहरूपा हैं। श्रीकृष्ण-स्नेह ही इनका सुगन्धित उबटन है। |
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