श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
इन्होंने स्वयं कहा है-
‘अर्जुन! मेरा जन्म और कर्म दिव्य है- इस प्रकार जो तत्त्व से जानता है, वह शरीर का त्याग करके पुनर्जन्म को नहीं प्राप्त होता, मुझे प्राप्त होता है।’ जिसके जन्म का रहस्य जानने पर जानने वाले का जन्म नहीं होता, उसका वह जन्म दिव्य है- इसमें क्या संदेह है। वास्तव में भगवान का सच्चिदानन्दमय भगवद्देह नित्य, शाश्वत और हानोपादानरहित भगवत्स्वरूपमय है। अप्राकृत ही नहीं, परम दिव्य है। जन्म-मृत्यु-युक्त, कर्म-जनित और पांच्चभौतिक नहीं! इसी से यह नित्य है। इसमें सृजन-विनाश की कल्पना ही नहीं है। इसीलिये भगवान ने स्वयं गीता में मानव-सदृश दीखने वाले इस सच्चिदानन्द श्रीकृष्ण विग्रह को प्राकृत मनुष्य-देह मानने वालों को ‘बुद्धिहीन’ और ‘मूढ़’ कहा है। वे वहाँ ‘परम’ भाव- भगवर्भाव- भगवत्स्वरूप की महिमा का संकेत करते हुए कहते हैं-
“वे बुद्धिहीन लोग मेरे सर्वश्रेष्ठ ‘परमभाव’- नित्य-चिदानन्द विग्रह भगवत्स्वरूप को न जानते हुए मुझ माया दृष्टि से व्यक्त न होने वाले भगवान को व्यक्तिभावापत्र मनुष्य मानते हैं।” |
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