श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
वे महापापी को भी अनन्य भाक होकर भजने पर तुरंत धर्मात्मा, शाश्वती शान्ति का अधिकारी और भक्त बना लेते है[1] उनका स्मरण करते हुए मरने वाला उन्हीं को निस्संदेह प्राप्त करता है[2] सम्पूर्ण जगत उनके एक अंश मात्र में स्थित है[3] उनके सिवा किंचिन्मात्र भी दूसरी वस्तु नहीं है, सारा चराचर जगत सूत्र में सूत्र के मनियों की भाँति उनमें गुँथा है[4] वे आत्मा रूप से सर्वत्र सब प्राणियों के हृदय में स्थित है।[5] वे अमृत, शाश्वत धर्म, ऐकान्तिक आनन्द और अविनाशी ब्रह्म की भी प्रतिष्ठा हैं[6] वे क्षर जगत से परे, कूटस्थ अक्षर ब्रह्म से उत्तम और परम पुरुषोत्तम है।[7] श्रीकृष्ण का गीतोक्त संक्षिप्त आत्मपरिचय है। इसके अतिरिक्त विभिन्न शास्त्र- वेद, उपनिषद् पुराण, इतिहास, सर्वदर्शी ऋषि-मुनियों द्वारा रचित और अनुभवी महापुरुषों के द्वारा प्रणीत ग्रन्थों एवं सफल-जीवन महात्मा भक्तों- संतों के अनुभव के अनुसार श्रीकृष्ण पुरुषावतार, गुणावतार, लीलावतार मन्वन्तरावतार प्राभव-वैभव और परावस्थावतार, अंश-कलावतार, अर्चावतार आदि सभी अवतारों के मूल अवतारी, चतुव्र्यूह में सर्वप्रथम वासुदेव, सर्वेश्वरेश्वर, समस्त भगवत्स्वरूपों के अंशी, सबके आदि, अनादि, निर्गुण, स्वरूपभूतगुणमय, निराकार, भौतिक आकर से रहित, अचिन्त्यानन्तसद्गुण-समुद्र, सर्वातीत, सर्वमय, सर्वगुणमय, सर्वजीवप्राण, युगपद् विरोधिगुणाश्रम, ज्ञानमूर्ति, अखिलप्रेमामृतसिन्धु, षडैश्वर्यसम्पत्र, षोडशकलापूर्ण, परम-प्रेमस्वरूप, रसस्वरूप, रसिकशिरोमणि, भक्तानुग्रहकातर, भक्त-भक्तिमान्, हानोपादानरहित नित्यसत्य सच्चिन्मय भगवद्देह रूप दिव्य सच्चिदानन्दघन रसघनमूर्ति परात्पर पूर्ण पुरुषोत्तम ‘स्वयं भगवान’ हैं। उन्हीं अचिन्त्यानन्तमहिमामय सदा स्वमहिमा में सुप्रतिष्ठित भगवान ने आज के शुभ दिन इस धरा धाम को पावन करने के लिये दिव्य अवतार धारण किया था। यह ‘स्वयं भगवान’ का अवतरण था इसलिये सितकृष्णकेशावतार, नर- नारायणावतार, वामनावतार आदि सभी इनके अन्तर्गत हैं। समस्त पुरुष, अंश, कला, विभूति तथा लीला, शक्ति आदि अवतार इन्हीं में अधिष्ठित हैं। इन्हीं अज, अविनाशी, सर्वेश्वरेश्वर का होने से यह अजन्मा का जन्म है। ये भगवान गर्भ में नहीं आये, मन में आये और इन्होंने अपने दिव्य स्वरूप में प्रकट होकर परम सौभाग्यशाली माता-पिता को आश्चर्यचकित कर दिया। इनके जन्म और कर्म सभी दिव्य हैं। |
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