श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
अतएव साधकों को बड़ी सावधानी से अपने साधन-पथ की रक्षा चाहिये। मार्ग में अनेक बाधाएँ हैं। विद्या, बुद्धि, तप, दान, यज्ञ आदि के अभिमान की बड़ी-बड़ी घाटियाँ हैं; भोगों की अनेक मन हरण वाटिकाएँ हैं, पद-पद पर प्रलोभन की सामग्रियाँ बिखरी हैं, कुतर्क का जाल तो सब ओर बिछा हुआा हैं, दम्भ-पाखण्ड रूपी मार्ग के ठग चारो ओर फैल रहे हैं, मान-बडाई के दुर्गम पर्वतों को लाँघने में बड़ी वीरता से काम लेना पड़ता है, परंतु श्रद्धा का पाथेय, भक्ति का कवच और प्रेम का अंग रक्षक सरदार साथ होने पर कोइ भय नहीं है। उनको जानने, पहचानने, देखने और पाने के लिये इन्हीं की आवश्यकता है; कोरे सदाचार के साधनों से और बुद्धि वाद से काम नहीं चलता। |
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