श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
इससे भी यह सिद्ध होता है, भगवान श्रीकृष्ण पूर्ण ब्रह्म थे। अब यह शंका होती है कि यदि वे पूर्ण ब्रह्म के अवतार थे तो नर-नारायण और श्रीविष्णु के अवतार कैसे हुए और भगवान विष्णु के अवतार तथा नर-नारायण ऋषि के अवतार थे तो पूर्ण ब्रह्म अवतार कैसे? इसका उत्तर यह है कि भगवान श्रीकृष्ण वास्तव में पूर्ण ब्रह्म ही हैं। वे साक्षात स्वयं भगवान हैं; उनमें सारे भूत, भविष्य, वर्तमान के अवतारों का समावेश है। वे कभी विष्णु रूप से लीला करते हैं, कभी नर-नारायण रूप से और कभी पूर्ण ब्रह्म- सनातन ब्रह्म रूप से। जे लोग विद्वान हैं, बुद्धिमान् हैं, तर्कशील हैं, वे अपने इच्छानुसार भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की समालोचना करें- उन्हे महा पुरुष मानें, योगेश्वर मानें, परम पुरुष मानें, पूर्ण मानव मानें अपूर्ण मानें, राजनीतिक नेता मानें, कुटिल नीतिज्ञ मानें, संगीत-विद्या-विशारद मानें या कवि कल्पित पात्र मानें; जो कुछ मन में आये, वह मानें साधकों की दृष्टि में तो- साँवरे मन मोहन के चरण-कमल ही दीनजनों के लिये अंधेकी लकड़ी हैं, कंगाल के धन हैं, प्यासे के पानी हैं, भूखे की रोटी हैं, निराश्रय के आश्रय हैं, निर्बल के बल हैं, प्राणों के प्राण हैं, जीवन के जीवन हैं, देवों के देव हैं, ईश्वरों के ईश्वर हैं और ब्रह्मों के ब्रह्म हैं, सर्वस्व वे ही हैं-बस। |
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