श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
जो भगवान से प्रेम भी करना चाहता है और भोग-जगत में छिपी आसक्ति रखकर भगवान से भोगवासना की पूर्ति कराना चाहता है, वह स्वयं ही अपनी वंचना करके अपने लिये नरक का मार्ग प्रशस्त कर रहा है और जगत के प्राणियों के सामने पतनकारक उदाहरण रख रहा है। अतएव इस क्षेत्र में आने वालों को बड़ी सावधानी के साथ संयम-नियम का पालन करते हुए अपने इन्द्रिय-मन-बुद्धि-प्राण-आत्मा सबको परम प्रेमास्पद भगवान के समर्पण के लिये प्रस्तुत करना चाहिये। इस पवित्र प्रेम के क्षेत्र में भगवान केवल त्यागमय अनन्य प्रेमवासना को देखते हैं-जाति, कुल, विद्या, पद, अधिकार, लोक आदि कुछ भी नहीं देखते, न पिछला इतिहास ही देखते हैं। वे देखते हैं केवल हमारे चित्त की वर्तमान स्थिति को, समर्पण की शुद्ध इच्छा को। वह यदि शुद्ध, तीव्र और एकान्त हो तो प्रेमास्पद भगवान तत्काल हमें स्वीकार कर लेते हैं और हमारी सारी दुर्बलताओं का तुरंत हरण करके हमें अपना दुर्लभ प्रेम प्रदान करते हैं। इस त्याग की-इस पूर्ण समर्पण की शिक्षा मिलती है श्रीराधा के पावन-निर्मल चरित्र से, उनकी आदर्श जीवन-लीलाओं से। आज हमें उसी का, उनके उन्हीं गुणों का स्मरण-मनन करना है। जो श्रीराधा जी अचिन्त्यानन्तदिव्यगुण-स्वरूप, सुर-ऋषि-मुनि-आकर्षक, स्वयं-भगवान श्रीकृष्ण के मन को अपने स्वाभाविक दिव्य गुणों से नित्य आकर्षित रखने वाली हैं, जो विशुद्ध श्रीकृष्ण-प्रेम-रत्न की खान हैं, सती अनसूया-अरुन्धती आदि जिनके पातिव्रत धर्म की, लक्ष्मी-पार्वती आदि जिनके सौन्दर्य-सौभाग्य की इच्छा करती हैं, श्रीकृष्ण भी जिनके सदगुणों की गणना नहीं कर सकते और स्वयं श्रीकृष्ण जिनके गुणों के वश में हुए रहते हैं, उन दिव्यगुणमयी राधा के असंख्य गुण हैं। |
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