श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
यही त्याग जब परमार्थ-क्षेत्र में आ जाता है, (और आना ही चाहिये; क्योंकि मानव-जीवन का उद्देश्य भोग है ही नहीं, भगवान हैं) तब यह परम पवित्र प्रेम बनकर भगवान के साथ अपने नित्य अभेद की स्थिति को प्राप्त करा देता है। फिर बन्ध-मोक्ष या जन्म-मरण की कल्पना नहीं रह जाती। जैसे प्रेमी भक्त भगवान के लिये पागल हो जाता है, वैसे ही भगवान भी भक्त के लिये पागल रहते हैं। वे अपनी सारी सत्ता-भगवत्ता को भुलाकर भक्त के ‘हृदय’ बन जाते हैं और उसे अपना ‘हृदय’ बना लेते हैं। श्रीराधा पूर्वराग करके जैसे श्रीकृष्ण-प्रेम में उन्मादिनी होती हैं, वैसे ही श्रीकृष्ण में भी राधा के प्रेम में पूर्वराग की मधुर लीला होती है। इस पूर्वराग के दस लक्षण बतलाये गये हैं- लालसा, उद्वेग, जडता, कृशता, जागरण, व्यग्रता, व्याधि, उन्माद, मोह और मरणोद्यम। ये सभी दिव्य होते हैं।
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