श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीगोपी तथा श्रीराधा के समर्पणमय प्रेम से जगत् के लोगों को जो महान त्याग की शिक्षा मिलती है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। यह नियम है कि छोटे या बड़े, किसी भी क्षेत्र में, व्यक्ति या समष्टि में जितना अधिक दूसरे के लिये ‘त्याग’ होगा, उतना ही विशुद्ध प्रेम बढ़ेगा और जितना-जितना प्रेम बढे़गा, उतना-ही-उतना ‘त्याग’ अधिक होगा। यों त्याग और प्रेम में परस्पर होड़ लग जायगी और इससे मनुष्य का त्यागमय प्रेम-जीवन सर्वत्र सहज ही शुद्ध आनन्द तथा सुख-शान्ति का विस्तार कर देगा; क्योंकि प्रेम देना जानता है, लेना नहीं। आज यदि जगत् के सभी मानव अपने सुख को भुलाकर, अपने सीमित स्वार्थ को छोड़कर, अपने हित की चिन्ता न करके दूसरे के स्वार्थ को अपना स्वार्थ समझने लगें तो सभी सबको सुख पहुँचाने तथा सभी सबका हित करने वाले हो जायँगे। इससे सभी का सहज सुख-हित-साधन होगा। |
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- ↑ नास्त्येव तस्मिंस्तसुखित्वम्।(नारदभक्तिसूत्र 24)
- ↑ नारदस्तु तदर्पिताखिलाचारिता तद्विस्मरणे परमव्याकुलतेति।(नारदभक्तिसूत्र 19)
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