श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
भगवान ही नहीं, संसार में किसी से भी प्रेम करना हो तो उससे कभी भी, कुछ भी प्राप्त करने की कल्पना भी न करो। तुम्हारे पास जो कुछ है, परम सुख मानकर उसे देते रहो उसके सुख-हित-सम्पादनार्थ। अपने को भूल जाओ, भूले रहो सर्वथा और सर्वदा। धर्म में प्रेम है तो धर्म के लिये दो, बदले में कुछ मत चाहो; चाहो तो धर्मार्थ देने की वृत्ति और स्थिति चाहो। आज इस राधाष्टमी के महोत्सव पर हम लोगों को श्रीराधा का मंगल-स्मरण करके उनके द्वारा प्रदर्शित त्यागमय प्रेम-पथ का ग्रहण करना है, तभी उत्सव की सार्थकता है। यह निश्चित रूप से जान लेना चाहिये कि विशुद्ध प्रेम, प्रेमरूपा भक्ति, भाव-राग-अनुराग का पथ अथवा रसमार्ग सर्वथा संयममय और त्यागमय है। केवल परम त्याग की नींव पर ही पवित्र प्रेम का मंगल-शोभन प्रासाद बन सकता है, काम के ऊपर से चमकते गंदे कीचड़ पर नहीं। प्रीति, स्नेह, मान, प्रणय, राग, अनुराग, भाव, महाभाव-सभी में उत्तरोत्तर त्याग और समर्पण की वृद्धि है। जैसे भगवान का सौन्दर्य-माधुर्य प्रतिक्षण वर्द्धमान है, उसी प्रकार प्रेमी भक्त का प्रेम, उस के त्यागमय समर्पण का भाव उत्तरोत्तर प्रतिक्षण वर्धमान होना चाहिये। |
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