श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा का स्वरूप
एक बार की बात है। ज्येष्ठ मास था। मध्याह्नकाल। श्रीराधाजी को पता चला कि श्रीश्यामसुन्दर गोवर्धन पर विराज रहे हैं। नंगे पैरों, जलती हुई भूमि पर वे चलीं। श्रीकृष्ण से मिलना उन्हें आकांक्षित है। इसलिये कि मिलने से श्रीकृष्ण को सुख होगा। वे अपने सुख के लिये उनसे नहीं मिलतीं। गोपियाँ श्रृंगार क्यों करती हैं? केश क्यों रखती हैं? वेणी क्यों बाँधती हैं? अच्छे कपड़े क्यों पहनती हैं? श्रृंगार के लिये नहीं? उनको इस रूप में देखकर श्रीकृष्ण को सुख होता है, इसीलिये; और कोई भी हेतु नहीं है। जीना उनके लिये, खाना-पीना उनके लिये, ओढ़ना-पहनना उनके लिये, सब कुछ उनके लिये। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि श्रीकृष्ण यदि चाहें कि गोपियाँ हमें गाली दें, हमारा अपमान करें, तो वे वैसा ही करती हैं। क्षोभ में गाली नहीं देतीं, अपमान नहीं करतीं। क्षोभ में मनमानी गाली देना तो काम-जनित क्रोध का कार्य है। वे तो उनकी तुष्टि के लिये ही उन्हें गाली देती हैं; इससे प्रियतम श्रीकृष्ण को अधिक प्रेम-रस का आस्वादन प्राप्त होता है। |
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज