श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय में प्रेम का दिव्य स्वरूप 7

श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय में प्रेम का दिव्य स्वरूप


प्रेम पयोधि परे दोउ प्यारे निकसत, नाहिंन कबहुँ रैन दिन।
जलतरंग नैंनिन तारे ज्यौं, न्यारे होत न जतन करौ किन।।
मिले हैं भाँवते भाग सुहाग भरे, अनुराग छबीले छिन-छिन।
श्रीहरिप्रिया लगे लग दोऊ निमिष, न रहें ये इन ये इन बिन।।[1]


प्यारी जू प्रानन की प्रतिपाल।
जिनकी दया सुदृष्टि बृष्टि करि, पल में होत निहाल।।
तन मन परम पुष्ट पन पावै, लावै रंग रसाल।
श्रीहरिप्रिया प्रेम सर बाढ़े, काढ़े दुख ततकाल।।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महावाणी, सुरत-सुख, दोहा-सं. 24
  2. महावाणी, सहज-सुख, पद-सं. 39

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