मधुराधिपतेरखिलं मधुरम

मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्'

अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।

ह्र्दयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥1॥
वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरम्।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेखिलं मधुरम्॥2॥
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुर: पाणिर्मधुर: पादौ मधुरौ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥3॥
गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं॥4॥
करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं स्मणं मधुरम्।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥5॥
गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥6॥
गोपी मधुरं लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम्।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥7॥
गोपा मधुरा गावो मधुरा याष्टिर्नधुरा सृष्टिमधुरा।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥8॥

॥ इति श्रीमाद्वल्लभाचार्या मधुरष्टकं सम्पूर्णम् ॥[1]



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भगवत्प्रेम अंक |लेखक: राधेश्याम खेमका |प्रकाशक: गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 15 |

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः