कन्हाई से प्रेम कैसे करें

कन्हाई से प्रेम कैसे करें?

श्रीसुदर्शन सिंहजी 'चक्र'

श्रुति कहती है-
न वा अरे सर्वस्य कामाय सर्वं प्रियं भवत्यात्मनस्तु
कामाय सर्वं प्रियं भवति।[1]

सावधान, दूसरे सब के लिये सब प्रिय नहीं होते, अपने-आत्मा के लिये सब प्रिय होते हैं।

श्रीमद्भागवत[2]- में श्री शुकदेव जी ने समझाया-
कृष्णमेनमवेहि त्वमात्मानमखिलात्मनाम्।
जगद्धिताय सोऽप्यत्र देहीवाभाति मायया।।

इन श्रीकृष्ण को ही समस्त प्राणियों की आत्मा समझो। ये यहाँ (व्रज में) जगत के परम कल्याण के लिये शरीरधारी की भाँति अपनी माया से प्रतीत हो रहे हैं।

इसी सन्दर्भ में स्वयं श्रीकृष्ण की गीता[3]- में कही गयी बात भी स्मरण कर लेने योग्य है -
येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धायान्विताः।
तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम्।।

अर्जुन! जो श्रद्धा पूर्वक दूसरे देवताओं के भक्त उनका यजन-पूजन करते हैं, वे भी मेरा ही यजन करते हैं, किंतु अविधि पूर्वक करते हैं।[4]


पृष्ठ पर जाएँ

1 | 2 | 3 | 4

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बृहदा. 2।4।5
  2. 10|14|55
  3. 9/23
  4. भगवत्प्रेम अंक |लेखक: राधेश्याम खेमका |प्रकाशक: गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 356 |

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः