यशोदा माता का वात्सल्य प्रेम
- अंकाधिरूढं शिशुगोपगूढं
- स्तनं धयन्तं कमलैककान्तम्।
- सम्बोधयामास मुदा यशोदा
- गोविन्द दामोदर माधवेति।।[1]
महाभाग्यवती यशोदाजी के सौभाग्य का वर्णन कौन कर सकता है, जिनके स्तनों का साक्षात ब्रह्माण्ड नायक ने पान किया है। संसार में अनेक प्रकार के भक्त हैं, उनकी इच्छा के अनुसार भगवान ने अनेक रूप धारण किये। नीच-से-नीच काम किये, छोटी-से-छोटी सेवा भगवान ने की। कहीं नाई बनकर पैर दबाये तो कहीं महार बने। धर्मराज के यज्ञ में सबके चरण पखारते रहें, किंतु उनको बाँधा किसी ने नहीं। छड़ी लेकर ताड़ना देने का सौभाग्य महाभाग्यवती यशोदाजी को ही हुआ। ऐसा सुख, ऐसा वात्सल्य-आनन्द संसार में किसी को भी प्राप्त न हुआ, न होगा। इसीलिये महाराज परीक्षित ने पूछा है, महाभागा यशोदा ने ऐसा कौन-सा सुकृत किया था, जिसके कारण श्री हरि ने उनका स्तन पान किया?
नन्द बाबा की रानी यशोदा मैया के कोई सन्तान न थी। वृद्धावस्था में आकर श्याम सुन्दर उनके लाड़ले लाल बने। माता के हर्ष का ठिकाना नहीं। आँखों की पुतली की तरह वे अपने श्याम सुन्दर की देख-रेख करने लगीं। यद्यपि वे बाहर से काम करती थीं, किंतु उनका मन सदा श्याम सुन्दर की ओर लगा रहता था। श्याम सुन्दर उनकी आँखों से ओझल न हों, मनमोहन सदा उनके हृदय मन्दिर के आँगन में क्रीड़ा करते रहें। चर्मचक्षु भी अनिमेष भाव से उन्हें देखते रहें। किंतु यह बालक अद्भुत था, जन्म के थोड़े ही दिन बाद पूतना ने आकर इसे मारना चाहा, वह स्वयं मारी गयी। शकटासुर ने माया फैलायी, उसका भी अन्त हुआ। व्योमासुर ने जाल रचा, वह भी यमलोक सिधारा। इस प्रकार रोज ही नये-नये उत्पात होने लगे। माता को बड़ी शंका हुई, बच्चा बड़ा चञ्चल है। इसकी चञ्चलता दिन-प्रति-दिन बढ़ती जाती है, पता नहीं, क्या घटना घट जाय। एक दिन माता दूध पिला रही थी, उधर दूध उफना। बच्चे को वहीं जमीन पर रख कर दूध को देखने लगी। चञ्चल भगवान ही जो ठहरे। दही की मटकी फोड़ दी, माखन फेंक दिया, बन्दरों को बुला लिया। माता ने देखा, यह तो बड़ा अनर्थ हुआ, देखते ही भागेगा और पता नहीं कहाँ जाय। धीरे से पकड़ लिया और बोली - ‘अब बता, तू बड़ी चञ्चलता करता है। घर में टिकता ही नहीं, मैं तुझे बाँधूँगी।’ यह कहकर ओखली से उन्हें बाँध दिया। जो कभी नहीं बँधे थे वे बँध तो गये, किंतु उनका बन्धन भी दूसरों की मुक्ति के ही लिये था। ओखली को घसीटते हुए यमलार्जुन वृक्षों के बीच में पहुँचे और उन्हें अपने पावन स्पर्श से शापमुक्त कर दिया। नन्दजी ने देखा कि उत्पाद बढ़ रहे हैं तो वे अपने शकटों को जोत कर ज्ञाति बन्धुओं और गौओं के साथ श्री वृन्दावन चले गये।[2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अपनी गोद में बैठकर दूध पीते हुए बाल कृष्ण को लक्ष्य करके प्रेमानन्द के उद्रेक में माता यशोदा प्यार से कहती हैं - ऐ मेरे गोविन्द! ऐ मेरे दामोदर! बच्चा माधव! बोलो तो सही! (गोविन्ददामोदरस्त्रोत्रम् 10)
- ↑ भगवत्प्रेम अंक |लेखक: राधेश्याम खेमका |प्रकाशक: गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 366 |
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