श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय में प्रेम का दिव्य स्वरूप 4

श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय में प्रेम का दिव्य स्वरूप


सेऊँ श्रीबृन्दाबिपिन बिलास।
जहाँ जुगल मिलि मंदिर मूरति, करत निरंतर बास।।
प्रेम-प्रवाह रसिकजन प्यारे, कबहुँ न छाँड़त पास।
कहा कहौं भाग की श्रीभट, राधाकृष्ण रस चास।।[1]


मन बच क्रम दुर्गम सदा, ताहि ब चरन छुवात।
राधा तेरे प्रेम की, कहि आवत नहिं बात।।[2]

राधे तेरे प्रेम की का पै कहि आवै।
तेरी-सी गोपाल की, तो पै बनि आवै।
मन बच क्रम दुर्गम किसोर, ताहि चरन छवावै।
श्रीभट मति वृषभानुजे, परताप जवावै।।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीयुगलशतक-सिद्धान्त-सुख, पद-सं. 10
  2. श्रीयुगलशतक-सिद्धान्त-सुख, दोहा-सं. 29
  3. श्रीयुगलशतक-सिद्धान्त-सुख, दोहा-सं. 29

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