सूफ़ी संतों की प्रेमो पासना

सूफ़ी संतों की प्रेमो पासना

पं. श्रीकृष्णदत्तजी भट्ट

मुमकिन न बुबद कि यार आयद बकिनार,
खुदरा अज़ ख़याले ख़ामो अन्देशा बरार,
हर चीज कि गैर अस्त दर सीनए तुस्त,
बिसयार हिजाबेस्त मियाने तो व यार!

सूफ़ी संत सरमद ने सूफ़ी प्रेमोपासना का रहस्य बता दिया है। वह कहता है इन शब्दों में -

‘जब तक तेरे दिल में बाहरी चिन्ताएँ भरी हैं, झूठी भावनाएँ भरी हैं, तब तक यह कैसे मुमकिन है कि तेरा यार, तेरा प्रेमास्पद - ब्रह्म तुझे मिल जाय? जब तक तेरे दिल में ये दूसरी चीजें भरी हैं, तब तक यार से कैसे मिल सकेगा? तेरे और उसके बीच में यही तो पर्दा है।’

मतलव?

अपने प्रेमास्पद को छोड़ कर और किसी का चिन्तन न करना, दिल में उसके सिवा और किसी को न ठहरने देना, किसी ख्वाहिश, किसी इच्छा, किसी कामना को न पनपने देना - बस, इतनी-सी ही तो प्रेमोपासना है इन प्रेम मार्गी साधकों की। वे कहते हैं -
जिसे इश्क़का तीर कारी लगे, उसे ज़िंदगी जग में भारी लगे।
न छोड़े मुहब्बत दमे मर्ग तक, जिसे यार जानीसूं यारी लगे।।
न होवे उसे जग में हर्गिज़ करार, जिसे इश्क़की बेक़रारी लगे।
हर इक वक्त मुझ आशिक़े ज़ार कूं, पियारे, तेरी बात प्यारी लगे।।
‘वली’ कूं कहे तू अगर एक वचन, रक़ीबों के दिल में कटारी लगे।।

सूफ़ीभ्मत की, तसव्वुफ़ की जान है - प्रेम। एक सूफ़ी ने बड़े अच्छे शब्दों में उसका वर्णन किया है -

‘अगर इश्क़ न होता, इन्तज़ाम-आलमें सूरत न पकड़ता। इश्क़ के बग़ैर ज़िंदगी बवाल है। इश्क़ को दिल दे देना कमाल है। इश्क़ बनाता है। इश्क़ जलाता है। दुनिया में जो कुछ है, इश्क़ का जलवा है। आग इश्क़ की गरमी है। हवा इश्क़ की बैचेनी है। पानी इश्क़ की रफ्तार है। खाक इश्क़ का कयाम है। मौत इश्क़ की बेहोशी है। जिंदगी इश्क़ की होशियारी है। रात इश्क़ की नींद है। दिन इश्क़ का जागना है। नेकी इश्क़ की कुरबत है। गुनाह इश्क़ से दूरी है। बिहिश्त इश्क़ का शौक है। दोज़ख इश्क़ का जौक़ है।’[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भगवत्प्रेम अंक |लेखक: राधेश्याम खेमका |प्रकाशक: गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 382 |

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