कन्हाई का पक्षी

कन्हाई का पक्षी

लीला-दर्शन

आज एक पक्षी वाला आ गया नन्द्र ग्राम में। एक ही पक्षी था इसके पास; किंतु इतना सुन्दर पक्षी तो इधर दीखता नहीं। मयूर की कलँगी से भी अत्यन्त सुन्दर कलँगी और सुरंग पक्षी। बालकों के समान मधुर भाषा में छोटे-छोटे शब्द मानव भाषा के बोल लेता है। पक्षी वाला कहता था - ‘यह बहुत शुभ पक्षी है और अनेक बार इसकी भविष्यवाणियाँ सर्वथा सत्य होती हैं। यह आगम-ज्ञानी पक्षी है।
पक्षी वाला ही कहता था कि यह हिमालय के बहुत ऊपरी भाग में - हिमक्षेत्र में होता है। इसने भी यह पक्षी किसी दूसरे से क्रय ही किया है। पक्षी के पतले छोटे पदों में पक्षी वाले ने पतली कौशेय की काली रज्जु बाँध रखी थी। पक्षी उसके कर पर शान्त बैठा था। सम्भवतः उसे अपने बन्धन का आभास था। वह जानता था कि उड़ने का प्रयास व्यर्थ है।
शिशिर में आज पर्व का दिन है। बालक आज गोचारण को नहीं गये हैं। सब गोप भी प्रायः एकत्र हो गये हैं व्रजराज के चौपाल में पक्षी को देखने तो फिर बालक घरों में कैसे रह सकते हैं।
कन्हाई अभी-अभी दौड़ा-दौड़ा आया है भवन में से और बाबा के अंक में बैठ गया है। दाऊ और भद्र बाबा के दाहिने-बायें सटे बैठे हैं। दूसरे भी शतशः बालक व्रजराज के ही समीप हैं।
'आप जो पूछेंगे, यह उसका उत्तर देगा।’ पक्षी वाले ने अपना दाहिना हाथ लम्बा किया, जिस पर पक्षी बैठा है।
‘कनूँ! बेचारा पक्षी बँध है।’ देवप्रस्थ ने कन्हाई के कानों के समीप मुख ले जाकर कहा - ‘दुःख पाता होगा।’
‘बाबा! मैं पक्षी लूँगा।’ कन्हाई ने बाबा के मुख की ओर मुख किया और उनकी दाढ़ी में अपने दाहिने कर की अँगुलियाँ नचाता हुआ बड़े आग्रह से बोला।
‘तुम व्रज राजकुमार को अपना पक्षी दे दो!’ बाबा के बोलने से पहले ही नन्दन चाचा ने विचित्र अटपटे वेश वाले पक्षी वाले से कहा - ‘तुम जितना चाहो, इसका मूल्य ले लो।’
‘यह हिम प्रदेश का पक्षी है।’ पक्षी वाला बोला - ‘यहाँ वसन्त में ही मर जायगा।’
‘नहीं मरूँगा!’ पक्षी बोल उठा - ‘जिऊँगा, खूब जिऊँगा। मुझे विक्रय करो।’
‘यह आगम-ज्ञानी है।’ पक्षी की ओर देखकर पक्षी वाला बोला - ‘यही जाना चाहता है तो कुमार इसे लें।’
कन्हाई बाबा की गोद से कूदकर दौड़ गया पक्षी वाले के पास। पक्षी उड़कर श्याम के कर पर आ बैठा। पक्षी वाले ने रज्जु पकड़ा दी। पक्षी वाला स्वप्न में भी न सोच सकता हो इतने रत्न नन्दन चाचा भर लाये, गाय को चारा देने को जैसे लाये हों, उसी बड़े टोकरे भर चमकते रत्न। पक्षी वाला तो आँख फाड़े देखता रह गया। उसकी तो कई पीढ़ी बैठी खायँ इतना धन - व्रजराज-पोरि पर आकर भी कोई कंगाल रहा करता है।[1]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भगवत्प्रेम अंक |लेखक: राधेश्याम खेमका |प्रकाशक: गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 253 |

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