भक्त संग नाच्यौ बहुत गोपाल

‘भक्त संग नाच्यौ बहुत गोपाल’

ओरछा नरेश भक्त मधुकरशाह की भगवन्निष्ठा

पं. श्री हरिविष्णुजी अवस्थी

हुकुम दियो है पातशाह ने महीपन कौ,
मानों राव राजन प्रमान लेखियतु है।
चन्दन चढ़ायो कहूँ देव पद वन्दन को,
देहों सिर दाग जहाँ रेखा रेखियतु है।।
मुगल सम्राट अकबर के उक्त आदेश की अवहेलना करते हुए ओरछाधिपति मधुकरशाह जू देव बुन्देला चन्दन-केसर युक्त तिलक से मण्डित उन्नत ललाट और कण्ठ में तुलसी की माला धारण किये जब शाही दरबार में उपस्थित हुए तो उन्हें देखकर सभी दरबारी नरेश संशंकित हो उठे। तिलक शून्य ललाटों के मध्य मधुकरशाह के तिलक पूर्ण आलोकित ललाट को मणिधर की उपमा देते हुए कवि ने आगे लिखा-
सूनों कर गये भाल छोड़-छोड़ कण्ठमाल,
दूसरौ दिनेश तहाँ कौन पेखियतु है।
सोहत टिकैत मधुशाह अनियारौ जिमि,
नागन के बीच मनियारो देखियतु है।।

कुटिल और कुशल राजनीतिज्ञ अकबर को हिन्दू नरेशों के सम्भावित विद्रोह की आशंका से भयभीत हो मधुकरशाह की धर्मनिष्ठा की सराहना हेतु बाध्य हो जाना पड़ा। उसी दिन से ओरछेश द्वारा लगाये गये तिलक की प्रसिद्धि मधुकरशाही तिलक के रूप में तथा मधुकरशाह की प्रसिद्धि ‘टिकैत राय’ के रूप में हो गयी।।[1]



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भगवत्प्रेम अंक |लेखक: राधेश्याम खेमका |प्रकाशक: गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 470 |

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