‘परमधन राधे नाम अधार’
- परमधन राधे नाम अधार।
- जाहि स्याम मुरली में टेरत, सुमिरत बारंबार।।
- जंत्र-मंत्र औ बेद तंत्र में सबै तारकौ तार।
- श्रीसुक प्रगट कियो नहिं यातैं जानि सारको सार।।
- कोटिन रूप धरे नँद-नंदन, तऊ न पायौ पार।
- ब्यासदास अब प्रगट बखानत, डारि भार में भार।।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भगवत्प्रेम अंक |लेखक: राधेश्याम खेमका |प्रकाशक: गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 391 |
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