भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेमी कुछ गैर हिन्दू भक्त जन
श्रीराम-कृष्ण के प्रेमी भक्त - मेजर लीद
श्रीमद्भगवद्गीता और तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस के तो वे ऐसे अनन्य भक्त और प्रेमी थे कि नित्य उनका पाठ करते-करते श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक एवं श्रीरामचरितमानस की बहुत-सी चौपाइयाँ उन्हें कण्ठस्थ हो गयी थीं, जिन्हें वे बड़े प्रेम से गा-गा कर सुनाया करते थे। जिस समय वे गा-गा करके सुनाते, उस समय वे भगवान श्रीराम-कृष्ण के प्रेम में विभोर-गद्गद हो जाते थे।
मेरे द्वारा मेजर लीद से यह प्रश्न किया जाने पर कि ‘साहब! आपने एक अंग्रेज होने पर भी इस प्रकार हिन्दी और संस्कृत-भाषा का इतना ज्ञान प्राप्त कैसे किया कि जो इस प्रकार आप रामायण की चौपाइयाँ और श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक धड़ाधड़ बोल रहे हैं? आपको भगवान श्रीराम-कृष्ण की भक्ति का यह चस्का भी कहाँ से लगा कि जो भगवान श्रीराम-कृष्ण का नाम लेते ही आप एकदम से गद्गद हो जाते हैं?’
मेजर लीद ने कहा, ‘मैं जब आपके परम पवित्र देश भारत में मेजर-पद पर था, तब मैंने वहाँ लगातार सात वर्षों तक एक संस्कृत के विद्वान ब्राह्मण से संस्कृत भाषा पढ़ी थी। उन विद्वान ब्राह्मण को मैं प्रति मास पंद्रह रुपये दिया करता था। इसी से मुझे हिन्दू-फिलासफी का ज्ञान तथा उसमें अनुराग प्राप्त हो गया। अब मैं हिन्दू-फिलाॅसिफी से बढ़ कर और किसी को भी नहीं मानता हूँ। मैंने संस्कृत पढ़ कर हिन्दू धर्म का जो ज्ञान प्राप्त किया, उसके आधार पर मेरे मन ने निष्पक्ष होकर पूर्ण रूप से यह निश्चय और निर्णय कर लिया कि समस्त विश्व में एक मात्र आपका हिन्दू धर्म, सनातन धर्म ही पूर्ण है और इसी हिन्दू धर्म की शरण में आने से तथा हिन्दू धर्म के ग्रन्थों के अनुसार चलने से जीव का परम कल्याण हो सकता है। मेरा यह भी पूर्ण निश्चय और विश्वास है कि भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण मनुष्य नहीं थे। वे साक्षात परमात्मा के ही पूर्ण अवतार थे। जितने भी अवतार और बड़े-बड़े ऋषि-मुनि, संत-महात्मा एवं सिद्ध योगी हुए हैं, वे एक मात्र आपके परम पवित्र दिव्य देश भारत में ही और आपकी परम पवित्र हिन्दू-जाति में ही हुए हैं। आपका यह देश भारत वर्ष धर्म प्राण, परम पवित्र और जगद गुरु देश है। यह आपका परम सौभाग्य है कि जो आपने ऐसे परम पवित्र देश भारत में और परम पवित्र हिन्दू-जाति में जन्म लिया।’
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