भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेमी कुछ गैर हिन्दू भक्त जन 6

भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेमी कुछ गैर हिन्दू भक्त जन


गोलोकवासी भक्त श्री रामशरणदासजी ‘पिलखुवा’

(3)
श्रीकृष्ण-भक्त बहन रेहाना तैय्यबजी

पुनर्जन्म में विश्वास - स्व. बहन रेहाना जी हिन्दू-धर्म के पुनर्जन्म के सिद्धान्त में दृढ़ विश्वास रखती थीं। पुनर्जन्म के सम्बन्ध में हमारे प्रश्न करने पर उन्होंने कहा - ‘साधारणतः कोई प्रश्न कर सकता है कि ‘तुम्हारे पास क्या सबूत है कि जीव मृत्यु के बाद दुबारा जन्म लेता है?’ इसके उत्तर में कुछ लोग कह सकते हैं कि ‘कोई नहीं।’ परंतु मैं पूछती हूँ कि ‘क्या उनके पास कोई सबूत है कि पुनर्जन्म नहीं होता?’ इसका सामान्य-सा उत्तर यही होता है कि नहीं, कोई सबूत तो नहीं है पुनर्जन्म की बात भ्रम मात्र मालूम होती है। ऐसा उत्तर देने वालों से मुझे कहना होगा के आपको न कुछ अभ्यास है, न अनुभव। आपने तुरंत भ्रम मान लिया। यदि भ्रम है तो मैं बड़े भव्य भ्रमितों की पंगत में हूँ; क्योंकि मैंने तो स्वयं ही अपने जीवन में पुनर्जन्म की सत्यता का अनुभव किया है।

गीता से प्रेरणा - रेहाना बहन की श्रीमद्भगवद्गीता के प्रति अटूट श्रद्धा थी। गीता को वे महान एवं अद्वितीय धर्म ग्रन्थ मानती थीं। वे अपनी आत्म कथा ‘सुनिये काका साहब’ में लिखती हैं कि ‘सन 1923 ई. में मेरे जीवन में गीता जी प्रकट हुई। मैंने ‘यंग इण्डिया’ में बापू द्वारा की गयी गीता की प्रशंसा पढ़ी। मैं गीता ले आयी। उसे पढ़ा और पढ़ते-पढ़ते मेरे दिल-दिमाग पर मानो बिजलियाँ गिरती चली गयीं। मैं पागल हो गयी, विह्वल हों गयी और व्याकुल हो गयीं। मैंने लगातार उसे बीस बार पढ़ लिया, फिर भी उसे हाथ से अलग न रख सकी। रात को तकिये-तले रख कर सोती। मेरी आँखों के सामने एक अद्भुत सुन्दर, तेजोमय और आनन्दमय दुनिया मानो खुल गयी। गीता के सात सौ श्लोकों में मुझे चौदह ब्रह्माण्डों के रहस्य नजर आने लगे। मेरे सभी सवालों के एकदम से जवाब मिल गये। हर उलझन का सुलझाव मिल गया। हर अँधेरे का दीपक मिल गया। हर गुमराही को रहनुमा (मार्ग दर्शक) मिल गया। गीता में मैंने सब कुछ पा लिया।’

रेहाना बहन नियमित गीता का पाठ किया करती थीं। गीता के सभी श्लोक उन्हें कण्ठस्थ थे। वे श्रीमद्भगवद्गीता को सम्मान पूर्वक ‘गीता शरीफ’ कहकर पुकारा करती थीं।

अंग्रेजी शिक्षा को रेहाना बहन मानसिक गुलामी का प्रतीक मानती थीं। एक बार उन्होंने बड़े दुःख भरे शब्दों में कहा था - ‘अंग्रेजी शिक्षा ने हमारे मस्तिष्क को विकृत कर डाला है और अंग्रेजी दवाओं ने शरीर को।’

देशभक्त परिवार - रेहाना बहन ने सन 1901 ई. में एक गुजराती मुस्लिम परिवार में जन्म लिया था। तैय्यबजी का परिवार देश भक्ति के लिये विख्यात रहा है। पूरा परिवार गाँधी-भक्त रहा है। रेहाना जी के नाना न्यायमूर्ति बदरुद्दीन तैय्यबजी, उनके पिता अब्बास तैय्यबजी तथा परिवार के अन्य सभी सदस्यों ने जहाँ ऊँचे-ऊँचे पदों पर कार्य किये हैं, वहीं देश भक्ति के कार्यों में भी वे किसी से पीछे नहीं रहे हैं। उनके पिता अब्बास तैय्यब जी प्रसिद्ध और प्रमुख देशभक्त रहे हैं। रेहाना बहन ने गाँधी जी की प्रेरणा से नमक-सत्याग्रह में भी डटकर भाग लिया था।

रेहाना जी ने अपनी पुस्तक ‘गोपी-हृदय’ में श्रीकृष्ण-भक्ति की अनोखी आध्यात्मिक आत्मलक्षी कहानी लिखी है। ‘कृपाकिरण’ श्रीकृष्ण-भक्ति से ओत-प्रोत भजनों का संग्रह है। हिन्दू-धर्म, हिन्दू-दर्शन एवं हिन्दू-आचार-विचारों के प्रति उनकी श्रद्धा-भक्ति एवं दृढ़ विश्वास वस्तुतः प्रशंसनीय है। थोड़े में, रेहाना जी को हमने जैसा सुना, वैसा ही पाया।


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