भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेमी कुछ गैर हिन्दू भक्त जन 2

भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेमी कुछ गैर हिन्दू भक्त जन


गोलोकवासी भक्त श्री रामशरणदासजी ‘पिलखुवा’

(1)
श्रीरोनाल्ड निक्सन बने श्रीकृष्ण प्रेम-भिखारी[1]

श्रीकृष्ण प्रेमजी ने अपने गुरु यशोदा माई के साथ श्रीवृन्दावन धाम में रह कर अधिक समय तक उपासना-साधना की तथा श्रीमन्माध्वगोडेश्वराचार्य गोस्वामी बाल कृष्णजी महाराज के श्रीचरणों में बैठकर धर्म शास्त्रों का अध्ययन किया।

बाद में उन्होंने अल्मोड़ा जिले के मीरतोला नामक सुन्दर गाँव में एक आश्रम की स्थापना की। उसे ‘उत्तर वृन्दावन’ नाम दिया। इस आश्रम में श्रीराधा-कृष्ण का सुन्दर मन्दिर बनवाया तथा एक गोशाला की स्थापना की। श्रीकृष्ण प्रेम के अनेक अंग्रेज भक्त भी वहाँ वैष्णव-धर्म की दीक्षा लेकर विरक्त जीवन बिताने आ गये थे। वे अपने हाथों से भगवान श्रीबाल कृष्ण और गायों की सेवा करते थे। शेष समय शास्त्राध्ययन तथा लेखन-कार्य में बिताते थे। जब वे हाथों में मंजीरे लेकर भगवान के प्रेम में निमग्न होकर संकीर्तन और नृत्य करते तो अल्मोड़ा-क्षेत्र का यह स्थल साक्षात वृन्दावन का रूप धारण कर लेता था। समय-समय पर हमें श्रीकृष्ण प्रेमजी के दर्शन का, उनके संस्मरण सुनने का परम सौभाग्य प्राप्त होता रहता था। वे महान संत श्रीउड़िया बाबाजी महाराज और श्रीहरि बाबा जी महाराज जैसे संतों के प्रति अगाध श्रद्धा-भावना रखते थे। महामना पं. मदन मोहन मालवीयजी महाराज श्रीकृष्णप्रेम की निश्छल भक्ति-भावना तथा विद्वत्ता से बहुत प्रभावित थे।

(2)
श्रीकृष्ण-भक्त अंग्रेज डाॅ. डेविडसन

लगभग सन 1918 ई. की बात है, बाबूगढ़ (जिला मेरठ) - में एक अंगेरज डाॅ. डेविडसन, मेडिकल अफसर हो कर आये थे। डाॅ. डेविडसन साहब बड़े ही मिलनसार, सज्जन और सात्त्विक विचारों के श्रीकृष्ण-भक्त पुरुष थे। उनके सम्बन्ध में यह बात बड़ी प्रसिद्ध थी कि उन्होंने अपनी श्रीकृष्ण-भक्ति, श्रीकृष्ण नाम-जप और श्रीकृष्ण-प्रार्थना के बल पर अलौकि सिद्धियाँ प्राप्त कर ली हैं। डाॅ. डेविडसन के कमरे में मनुष्य के बराबर आकार वाली भगवान श्रीकृष्ण की एक बहुत ही सुन्दर प्रतिमा थी और वे उस प्रतिमा के सामने खड़े हो कर प्रेम में विभोर हो नृत्य करते हुए श्रीकृष्ण-कीर्तन किया करते थे। श्रीकृष्ण-कीर्तन में उनकी इतनी तन्मयता हो जाती थी कि वे अपने शरीर तक की भी सुध-बुध खो बैठते थे।

हापुड़-निवासी वैद्यराज पण्डित श्रीमुकुन्द लालजी शर्मा का श्रीकृष्ण-भक्त डाॅ. डेविडसन से बड़ा प्रेम था। एक दिन श्रीमुकुन्द लाल जी अपने कुछ मित्रों केा साथ लेकर डाॅ. डेविडसन साहब से मिलने के लिये बाबूगढ़ गयं सबने जा कर क्या देखा कि साहब का कमरा अंदर से बिलकुल बंद है और कुछ-कुछ गाने की-सी वाणी सुनायी पड़ रही है। वे कमरे के पीछे की ओर गये और जँगले से झाँक कर देखा तो उन्हें उस कमरे में एक मनुष्य के बराबर आकार वाली भगवान श्रीकृष्ण की बड़ी सुन्दर प्रतिमा स्थापित दिखायी दी। डाॅ. डेविडसन साहब भगवान श्रीकृष्ण का कीर्तन कर रहे थे। इन्होंने समझा कि ‘अग्रेंज लोग शराब पीते ही हैं, आज डाॅ. डेविडसन ने शायद ज्यादा शराब पी ली है और उसी के नशे में नाच-कूद रहे हैं। इसलिये अब इनसे मिलना और बातें करना उचित नहीं है।’ ऐसा अपने मन में विचार कर वे लोग वहाँ से चुपचाप चल दिये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीकृष्णप्रेमजी जाने-माने अंग्रेज श्रीकृष्ण-भक्त थे। वे रोनाल्ड निक्सन से ‘श्रीकृष्णप्रेम’ बने। अपना देश तथा वेश-भूषा त्यागकर परम वैष्णव बन अल्मोड़ा के निकट ‘उत्तर वृन्दावन’ बसाकर जीवन पर्यन्त श्रीकृष्ण के प्रेम में निमग्न रहे। उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता आदि का अंग्रेजी में अनुवाद किया

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