भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेमी कुछ गैर हिन्दू भक्त जन 3

भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेमी कुछ गैर हिन्दू भक्त जन


गोलोकवासी भक्त श्री रामशरणदासजी ‘पिलखुवा’

(2)
श्रीकृष्ण-भक्त अंग्रेज डाॅ. डेविडसन

साहब को श्रीकृष्ण नाम-जप, श्रीकृष्ण-नाम-कीर्तन और श्रीकृष्ण-प्रार्थना के द्वारा दूसरों के मन की बात जान लेने की अद्भुत शक्ति प्राप्त हो चुकी थी। इसलिये वे इनके मन की बाल भली-भाँति जान गये। ये लोग अभी कुछ ही दूर गये होंगे कि साहब ने झट से अपना कमरा खोल कर चपरासी को संकेत करके कहा - ‘सामने जाने वाले उन व्यक्तियों को हमारे पास बुला लाओ।’ चपरासी के बुलाने पर पण्डित श्रीमुकुन्द लाल शर्मा जी अपने साथियों के साथ वापस लौट आये। डाॅ. डेविडसन साहब ने उनसे पूछा कि ‘बताइये, आपने क्या देखा है और क्या समझा है?’

इस पर मुकुन्द लालजी ने कहा कि ‘साहब हमने कुछ नहीं समझा है।’

डेविडसन साहब ने कहा - ‘शायद आप लोगों को यह भ्रम हुआ है कि आज साहब शराब अधिक पी गये हैं और शराब के नशे में ही झूम रहे हैं, पर ऐसी बात नहीं है, यह आपका भ्रम ही है।’

डाॅ. साहब द्वारा अपने मन की बात सुनकर सभी दंग रह गये और उन्होंने कहा कि ‘जी हाँ, साहब! वास्तव में हमारे मन में यही बात आयी थी जो आप कह रहे हैं, पर आपको हमारे मन की बात मालूम कैसे हो गयी?’ डाॅ. साहब ने कहा - ‘अच्छा, अब आप सब मेरे इस कमरे में आइये।’ वे सबको अपने साथ कमरे में ले गये और अंदर ले जाकर दिखाया कि संगमरमर की बड़ी सुन्दर भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य प्रतिमा वहाँ विराजमान है, वह बहुत ही सुन्दर वस्त्राभूषणों और पुष्पहारों से सुसज्जित है। फिर साहब ने कहा कि ‘शर्मा जी!’ मैं इन्हीं अपने परम इष्ट देव भगवान श्रीकृष्ण के सामने खड़ा हो कर नृत्य-कीर्तन कर अपने प्रभु भगवान श्रीकृष्ण को रिझा रहा था और इस श्रीकृष्ण-प्रेम की मादकता में झूम रहा था, अन्य कोई बात नहीं थी।’

एक विदेशी और विधर्मी अंग्रेज के कमरे में भगवान श्रीकृष्ण की सुन्दर प्रतिमा को देख कर तथा उनके मुख से श्रीकृष्ण-भक्ति की सुन्दर मीठी रसीली बातें सुनकर सभी आश्चर्य चकित रह गये एवं सभी का हृदय गद्गद हो गया और वे अपने को कृतकृत्य मानने लगे।

श्रीकृष्ण-भक्त अंग्रेज डा. डेविडसन साहब मांस-मदिरा का खाना-पीना तो दूर रहाा, स्पर्श करना भी बड़ा घोर पाप मानते थे। आप एक परम वैष्णव बन गये थे। वेदों में तथा हिन्दू-धर्म के अन्य ग्रन्थों में आपकी बड़ी आस्था थी। आप हिन्दू सनातन धर्म को ही सर्वश्रेष्ठ और एक मात्र पूर्ण धर्म मानते थे। आपको श्रीकृष्ण-भक्ति का यह अद्भुत चस्का सर्वप्रथम अफ्रीका में लगा था और कुछ दिनों के पश्चात परम पवित्र श्रीमथुरा पुरी में आने पर तो आप पर श्रीकृष्ण भक्ति का पूरा-पूरा रंग चढ़ गया। जब तक आप जीवित रहे, श्रीकृष्ण-भक्ति में तल्लीन रहे और नित्य प्रति अपने परम इष्ट देव भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने खड़े हो कर नृत्य-कीर्तन करते रहे।


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