भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेमी कुछ गैर हिन्दू भक्त जन 4

भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेमी कुछ गैर हिन्दू भक्त जन


गोलोकवासी भक्त श्री रामशरणदासजी ‘पिलखुवा’

(3)
श्रीकृष्ण-भक्त बहन रेहाना तैय्यबजी

मैंने गाँधीजी की सुप्रसिद्ध शिष्या एवं विख्यात देश भक्त अब्बास तैय्यबजी की सुपुत्री स्व. बहन कुमारी श्रीरेहाना तैय्यबजी की श्रीकृष्ण-भक्ति के विषय में बड़ी चर्चा सुनी थी। हमारा मन बरबस उनके दर्शनों के लिये लालायित हो उठा। मैंने उन्हें एक पत्र लिखा कि हम आपसे भेंट करना चाहते हैं। इस पर बहन रेहानाजी ने मुझे 12 जून सन 1962 ई. को दिन के 11-30 बजे से 12-30 बजे मध्याह्न तक का समय दे दिया।

मैं अपने पुत्रा को लेकर पिलखुवा से दिल्ली स्थित काका साहब कालेलकर के निवास स्थान पर जा पहुँचा और 11 बजे से लगभग आधा घंटे तक हम काका साहब से विभिन्न विषयों पर चर्चा करते रहे।

श्रीकृष्ण-भक्ति का अद्भुत दृश्य - निश्चित समय ठीक 11-30 बजे हम श्रीरेहाना बहन के कमरे में प्रविष्ट हुए। सामने लकड़ी की एक चौकी पर बहन रेहानाजी बैठी हुई थीं और उनके समक्ष थी भगवान श्रीकृष्ण की एक बड़ी ही मनमोहिनी प्रतिमा, जिसके ऊपर उन्होंने सुगन्धित पुष्प भी चढ़ा रखे थे। पास में पूजा की घंटी रखी हुई थी। भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति के समीप ही वे बैठी थीं। पास में ही श्रीमद्भगवद्गीता, उपनिषद आदि ग्रन्थ रखे हुए थे। एक अहिन्दू-परिवार में जन्म ले कर भी भगवान श्रीकृष्ण की उपासना और हिन्दू-धर्म ग्रन्थों का स्वाध्याय एवं भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति की पूजा करते देखकर श्रद्धा से हमारा सिर उनके चरणों में झुक गया।

हम अपने साथ कुछ फल भी ले गये थे। हमने उन्हें उनके सामने रख दिया। वे झट से उठीं और उन्होंने उन फलों को अपने परम इष्टदेव भगवान श्रीकृष्ण के सामने अर्पण करके उनमें तुलसी पत्र छोड़ा और फिर अपनी आँखें बंद कर भगवान का भोग लगाने का मन्त्र पढ़ा, घंटी बजायी और बैठ गयीं। उन्होंने फल-प्रसाद सभी उपस्थित लोगों को बाँट दिया।

योगी और भोगी का अन्तर - वार्ता के मध्य हमने प्रश्न किया - आपकी दृष्टि में देश में दिनों दिन बढ़ रही नास्तिकता एवं अशान्ति का मूल कारण क्या है?

इस पर वे बड़ी गम्भीर हो कर बोलीं, ‘भाई साहब! जब योगी भोगी को अपना मार्ग दर्शक मान कर उससे कुछ सीखने का प्रयत्न करने लगेगा तो समझ लीजिये कि उस समय घोर कलियुग आ जायगा एवं अनाचार, पापाचार, अत्याचार और व्यभिचार आदि बढ़ जायँगे। भारत धर्म प्राण योगियों का परम पवित्र महान देश है। अन्य पश्चिमी देश भोगियों के देश हैं और भौतिकवादियों के केन्द्र हैं। भारत भूमि पर भगवान के मंगलमय श्रीचरण पड़े हैं और इसकी पवित्र धरती पर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लेकर लीलाएँ की हैं। त्याग एवं वैराग्य का यह केन्द्र रहा है। अतः यदि भोगी (पश्चिमी देश) हम से (भारत से) कुछ शिक्षा ग्रहण करें तो ठीक है, पर यदि उलटे हम (योगी) ही उन महान भौतिकवादी भोगियों के पीछे दौड़ेंगे तो उसका परिणाम क्या होगा, इसका अनुमान लगा लीजिये। आज कल ठीक वही हो रहा है। आज उलटी गंगा बह रही है। जहाँ कभी पश्चिमी देश भारत को धर्म भूमि और योगियों का परम पवित्र देश मान कर उससे शिक्षा ग्रहण किया करते थे, वहाँ आज हम भारतीय उलटे भोगी देशों को अपन पथ प्रदर्शक (गुरु) मानकर उनका अन्धानुकरण करने में ही महान गौरव का अनुभव कर रहे हैं। देश के घोर अधः पतन का यही मूल कारण है।


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