श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीगोपांगनाओं की महत्तापरकीया भाव में चार बातें महत्त्व की होती हैं-
गोपियाँ श्रीकृष्ण की परकीया थीं या श्रीकृष्ण को जार भाव से भजतीं थी- इस कथन का इतना ही तात्पर्य है कि वे श्रीकृष्ण का निन्तर चिन्तन करतीं, उनसे मिलने की उनके मन में निरन्तर उत्कण्ठा जाग्रत् रहती, वे श्रीकृष्ण में दोष कभी नहीं देखतीं और श्रीकृष्ण से कुछ भी न चाहकर निरन्तर अपने को पूर्ण समर्पित समझती थीं। वे उनके प्रत्येक व्यवहार को प्रेम की ही दृष्टि से देखा करती थीं। इसी भाव को व्यक्त करने के लिये ‘जारबुद्धि’ आदि पदों का प्रयोग हुआ है। हमें गोपियों के इस अहैतुक प्रेम का, जो केवल श्रीकृष्ण को सुख पहुँचाने के लिये था, निरन्तर स्मरण रखना चाहिये। |
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