श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
मुरली और रस
इस वंशी की और रास की कुछ आलोचना किये बिना गोपी-प्रेम की चर्चा अधूरी रह जाती है। इसलिये इन विषयों पर भी कुछ विचार करना है। श्रीकृष्ण मिलन के लिये कात्यायनी की पूजा करने वाली गोपियों को वर देने के दिन भगवान ने उनके वस्त्र हरण कर उनके निर्मल और अनन्य प्रेम की परीक्षा की। उनका सारा भेद–ज्ञान हरण करके उन्हें निर्मल प्रेमपथ की अधिकारिणी समझकर मिलन का वरदान दिया। वस्त्र हरण-लीला में पाप देखना पाप बुद्धि का परिणाम है। जीवात्मा परमात्मा के सामने कोई पर्दा नहीं रह सकता। पर्दा माया में ही है। सब के अन्तरात्मा भगवान से कौन जीवात्मा अपने अगों को छिपाने का भाव रख सकता है। वह जब तक छिपाता है, तब तक परमात्मा को परमात्मा न समझकर अपने पृथक्त्व का अभिमान बनाये रखता है। चीर हरण से गोपियों का यह मोह भगं हुआ। उन्होंने श्रीकृष्ण को परमात्मा समझा और जीव भाव के हेतु अभिमान के पदों को तोड़कर भेद मूलक माया के वस्त्र से सर्वथा रहित होकर वे सर्वात्मरूप प्रभु के सामने आ गयीं। इसके कुछ दिनों बाद शरत्पूर्णिमा आयी। भगवान के मिलन का दिन आया। शारदीया रजनी, प्रफुल्ल मल्लिका, पूर्ण सुधांशु की सुधामयी मधुर किरणें आदि उद्दीपन भावों से गोपियों के हृदय में एक अलक्ष्य आकाक्षां जाग उठी, मानो उनका हृदय किसी अलभ्य वस्तु को चाहने लगा। यह थी श्रीकृष्ण मिलन की कामना। बस, इसी समय श्रीकृष्ण की मोहन मुरली बज उठी। शारद सुधाकर की ज्योत्स्त्रा ने, नील यमुना के निर्मल सैकत में स्थित, मन्दानिल से आन्दोलित माधवी कुच्च में आत्माराम, पूर्णकाम, योगेश्वर, नित्य-नव नटवर मोहन की मधुर मुरली से विश्व-विमोहन प्रेम के आवाहन का अनगंवर्धक आनन्ददायक संगीत प्रारम्भ हो गया। |
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