|
प्रेम-एकादशी
- प्रियतम प्रभु कौ प्रेम ही जहँ जीवन कौ रूप।
- प्रियतम के गुन बिसद तहँ प्रगटित रहैं अनूप।।
- बढ़त, घटत, बदलत सतत, होत जगत कौ अंत।
- बढ़त रहत पै त्यागमय पल-पल प्रेम अनंत।।
- कलुष-रहित, उज्ज्वल, अकल, अनुपम, परम अमान।
- प्रेमरूप हरि ही स्वयं, प्रेम स्वयं भगवान।।
- सोई प्रम नित मूर्त ह्वै बन्यो राधिका-रूप।
- बिलसम संतत स्याम सँग, प्रगटत सुधा अनूप ।।
|
|