श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
भगवदवतार का रहस्य‘कोई कहते हैं कि आपने पुण्यश्लोक राजा युधिष्ठिर का यश बढ़ाने के लिये ही यदुवंश में अवतार लिया है अथवा चन्दन जिस प्रकार मलयाचल में पैदा होकर उसकी कीर्ति बढ़ाता है, उसी प्रकार आपने महाराज यदु का यश बढ़ाने के लिये यदुवंश में अवतार लिया है। किसी का कथन है कि श्रीवसुदेव-देवकी ने अपने पूर्वजन्म में आपसे पुत्र रूप में प्रकट होने की प्रार्थना की थी; उनकी प्रार्थना से अजन्मा होते हुए भी आप जगत् के कल्याण और देवद्रोही दानवों का वध करने के लिये ही उनके पुत्र रूप से अवतीर्ण हुए हैं। कोई कहता है कि समुद्र में डूबती हुई नौका के समान पृथ्वी भारी भार से डूबी जा रही थी, उसके भार को उतारने के लिये आपने ब्रह्माजी की प्रार्थना से अवतार धारण किया है।’ अब कुन्तीजी अपना मत प्रकट करती हैं कि ‘इस संसार में अज्ञान, कामना और कामनायुक्त कर्मों के कुचक्र में पड़े हुए जो जीव विभिन्न प्रकार के क्लेश भोग रहे हैं, उन संतप्त जीवों को क्लेश से मुक्त करने के लिये उनके सुनने और मनन करने योग्य सुन्दर दिव्य लीलाओं को करने के लिये आपने अवतार लिया है। जो लोग आपकी प्रेमभरी दिव्य लीलाओं को सुनते हैं, गाते हैं, कीर्तन करते हैं, बार-बार स्मरण करके आनन्दित होते हैं, वे शीघ्र ही जन्म-मरणरूपी संसार-प्रवाह को शान्त करने वाले आपके मंगलमय चरण कमलों के दर्शन पा जाते हैं।’ उपर्युक्त सभी प्रयोजन उचित और सत्य हैं, परंतु कुन्ती जी का बतलाया हुआ अन्तिम प्रयोजन बहुत ही हृदयग्राही है। भगवच्चरित्र ही वस्तुतः भवसागर से तरने के लिये दृढ़ नौका है। कलियुगी जीवों का तो यही आधार है। इसी से गोसाई तुलसीदास जी ने कहा है-
अमलात्मा मुनियों को भक्ति योग प्रदान करने वाला प्रयोजन भी बहुत ही युक्ति युक्त है। इसी से तो पवित्र भागवत धर्म की स्थापना होती है। इन्हीं हेतुओं से सर्वतन्त्र-स्वतन्त्र इच्छाशून्य भगवान अवतीर्ण होने की इच्छा करते हैं। |
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