श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
सौन्दर्य-लालसा‘सखी! नव जलधर की अपेक्षा जिनकी सुन्दर कान्ति है, नवीन विद्युत-माला से भी अधिक चमकीला जिनका मनोज्ञ पीताम्बर है, जिनका वदनचन्द्र निर्मल शारदीय पूर्ण चन्द्रमा की अपेक्षा भी समुज्ज्वल तथा चित्र-विचित्र सुन्दर मुरली के द्वारा सुशोभित है, जो मयूरपिच्छ से सुभूषित हैं और जिनके गले में निर्मल कान्तियुक्त श्रेष्ठ मोतियों की माला चमक रही है, वे मदनमोहन मेरे नेत्रों की दर्शन-स्पृहा बढ़ा रहे हैं।’ नेत्रों की ही क्यों- प्रत्येक इन्द्रिय की दर्शन-स्पृहा बढ़ रही है। सभी अंग उनके मधुर मिलन की उत्कट आकांक्षा से आतुर हैं। बार-बार मिलने पर भी वियोग की-विरह की ही अनुभूति होती है। वे फिर कहती हैं-
‘सखि! जिनकी कण्ठध्वनि मेघ-गर्जन के सदृश सुगम्भीर है, जिनके आभूषणों की मधुर झनकार कानों को आकर्षित करती है, जिनके परिहास-वचनों में विविध भावभगिमाओं का उदय होता रहता है और जिनकी मुरलीध्वनि के द्वारा लक्ष्मी आदि देवियों का हृदय-हरण होता रहता है, वे मदनमोहन मेरे कानों की श्रवणस्पृहा को बढ़ा रहे हैं।’
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