श्रीराधा माधव चिन्तन-हनुमान प्रसाद पोद्दार
अवश्य ही उनकी क्रिया का अनुकरण करना सबके लिये न तो उचित है और न सम्भव ही; क्योंकि भगवान की क्रिया भगवान के स्वधर्मानुकूल होती है। जीव में भगवत्ता न होने से वह भगवान के धर्म का आचरण नहीं कर सकता। भगवान श्रीकृष्ण आग पी गये, वे वरुण लोक से नन्द को ले आये, यमराज के यहाँ से गुरु पुत्र को लौटा लाये, उन्होंने दिन में ही सूर्य को छिपा दिया, बाल लीला में कनिष्ठिका अँगुली पर पहाड़ उठा लिया और अपने चरित्रों से ब्रह्मा को भी मोहित कर दिया। जीव इनमें से कोई-सा भी कार्य नहीं कर सकता। इसीलिए भगवान की क्रिया का अनुसरण भी मनुष्य नहीं कर सकता। हाँ, उनकी वाणी का– उनके उपदेशों का पालन अवश्य करना चाहिये और इसी में जीवों का कल्याण है। ऐसा होने पर भी साकर-मगंलविग्रह भगवान की लीला में वस्तुतः ऐसी कोई क्रिया नहीं होती, जो शास्त्र विरुद्ध हो या जिसे हम चोरी- जारी या किसी पाप की श्रेणी में रख सकें। मोहवश मूढ़लोग उनके स्वरूप को न समझने के कारण ही उनकी क्रियाओं पर दोषारोपण कर बैठते हैं। [1]तब फिर इस ‘चोरी-जारी’ का क्या अर्थ है? अब इसी पर संक्षेप में विचार करना है। यों तो वेदों में भी भगवान को ‘स्तेनानां पतये नमः चोरों का सरदार कहकर प्रणाम किया गया है भगवान श्रीराम को भी प्राचीन सदग्रन्थों के आधार पर श्रीराम स्वरूप के अनुभवी गोस्वामी श्रीतुलसीदासजी ने ‘लोचन सुखद बिस्व चितचोरा’ कहा है। परंतु प्रधान रूप से यह ‘चोर-जार-शिखामणि’ नाम भगवान श्रीकृष्ण के लिये ही प्रयुक्त हुआ है। श्री’मद्भागवत के अनुसार यह स्पष्ट है कि श्रीकृष्ण स्वयं भगवान हैं- ‘कृष्णस्तु भगवान स्वयम्।’ गीता में तो भगवान श्रीकृष्ण अपने ही श्रीमुख से बारम्बार अपने को साक्षात् सर्वाधिपति सच्चिदानन्दघन परात्पर तत्त्व घोषित किया है। और इन भगवान का ‘चोर-जार-शिखामणि’ नाम रखा गया है उन व्रज- गोपियों के द्वारा, जिनके चरणों की पावन धूलि पाने के लिये देवश्रेष्ठ ब्रह्मा और ज्ञानि श्रेष्ठ उद्धव तिर्यगादि योनि और लता-गुल्मादि जड शरीर धारण करने में भी अपना सौभाग्य समझते हैं [2]तथा स्वयं भगवान जिनका अपने को ऋणी घोषित करते हैं।[3] गोपियों के घर माखन खाकर और यमुना तट पर उनके वस्त्रों को कदम्ब पर रख कर भगवान श्रीकृष्ण चोर कहलाये तथा शारदीया पूर्णिमा की रात्रि को गोपियों में आत्मरमण कर भगवान ‘जार’ कहलाये। परंतु इस माखनखोरी, चीरचोरी और रासरमण के प्रेम राज्य सम्बन्धी रहस्य का किचित भी तत्त्व समझमें आ जाय तो फिर यह बात भली-भाँति जान ली जाती है कि न तो यह ‘चोरी’ वस्तुतः चोरी ही है और न वह ‘रमण’ कोई परस्त्रीसगंरूप व्यभिचार ही है। |
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- ↑ अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्।
परं भावमजानन्तो मम भूतेमहेश्वरम्।।(गीता ९। ११)
‘सब भूतों के महेश्वर रूप मेरे परम भाव को जानने वाले मूढ़ मनुष्य ही मानव- शरीर धारी मुझ भगवान को न पहचान मुझे तुच्छ समझते हैं।’ - ↑ तद् भूरिभाग्यमिय जन्म किमप्यटव्यां
यद् गोकुलेऽपि कतमाङ्घ्रिरजोऽभिषेकम्।
यज्जीवितं तु निखिलं भगवान मुकुन्द-
स्त्वद्यापि यत्पदरजः श्रुतिमृग्यमेव।। (श्री’मद्भा० १0। १४। ३४)
श्रीब्रह्माजी कहते हैं- ‘भगवान ! मुझे इस धरातल पर व्रज में- विशेषतः गोकुल में किसी कीड़े-मकोड़े की योनि मिल जाय, जिससे मैं गोकुल वासियों की चरण-रज से अपने मस्तक को अभिषिक्त करने का सौभाग्य प्राप्त कर सकू, जिन गोकुल वासियों के जीवन सम्पूर्ण-रूप से आप भगवान मुकुन्द हैं, जिनकी चरण-रज को अनादि काल से अब तक श्रुति खोज रही है (परंतु पाती नहीं)।’
आसामहो चरणरेणुजुषामहं स्यां
वृन्दावने किमपि गुल्मलतौषधीनाम्।
या दुस्त्यजं स्वजनमार्यपथं च हित्वा
भेजुर्मुकुन्दपदवीं श्रुतिभिर्विमृग्याम्।। (श्री’मद्भा० १0। ४७। ६१)
वन्दे नन्दव्रजस्त्रीणां पादरेणुमभीक्ष्णशः।
यासां हरिकथोदगीतं पुनाति भुवनत्रयम्।। (श्री’मद्भा० १0। ४७। ६३)
श्रीउद्धवजी कहते हैं-
‘अहो ! इन गोपियों की चरण-रज का सेवन करने वाले वृन्दावन में उत्पन्न हुए गुल्म, लता और ओषधियों में से मैं कुछ भी हो जाऊँ (जिससे उन गोपियों की चरण-रज मुझे भी प्राप्त हो); क्योंकि इन गोपियों ने बहुत ही कठिनता से त्याग किये जाने योग्य स्वजनों को और आर्य पथ को त्याग कर भगवान मुकुन्द के मार्ग को प्राप्त किया है।, जिसको श्रुतियाँ अनादि काल से खोज रही हैं। मैं उन नन्द-व्रजवासिनी स्त्रियों की चरण-रेणु को बार-बार नमस्कार करता हूँ, जिनके द्वारा किया गया भगवान की लीला-कथाओं का गान त्रिभुवन को पवित्र करता है।’ - ↑ न पारयेऽहं निरवद्यसंयुजां स्वसाधुकृत्यं विबुधायुषापि वः।
या माभजन् दुर्जरगेहश्रृखंलाः संवृरच्य तद्वः प्रतियातु साधुना।। (श्री’मद्भा० १०। ३२। २२)
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- ‘प्रियाओ! तुमने घर की कठिन बेड़ियों को निःशेष रूप से तोड़कर मेरी सेवा की है, तुम्हारे इस साधुकार्य का बदला मैं देवताओं की आयु में भी नहीं चुका सकता। तुम अपनी ही उदारता से मुझे इस ऋण से मुक्त कर सकती हो।’
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