श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
जे कुछ भी हो, आज इन लीलामय पूर्ण पुरुषोत्तम स्वयं भगवान का प्राकट्य-महोत्सव है। आज का दिन समस्त विश्व के लिये मंगलमय है। इन्होंने व्रज में वात्सल्य-सख्य-मधुरभाव की अनुपम लीलाएँ कीं, असुरों का उद्धार किया, कंसादि का उच्छेद-साधन करके समाज-कल्याण किया, कुरुक्षेत्र के रणांगण में महान् आश्चर्य प्रद सर्व लोककल्याणकारी समस्त देशकालपात्रोयोगी विविध अर्थमयी दिव्य भगवद्वाणीस्वरूप श्रीमद्भागद्गीता का दिव्य गान किया, राज्यों तथा राजाओं का निर्माण किया, स्वयं सदा निरपेक्षस्वरूप स्थित रहकर विभिन्न विचित्र लीलाएँ कीं और अन्त में अपने दिव्य देह से ही सबके देखते-देखते परमधाम को पधार गये। इनके स्वरूप, तत्त्व, रहस्य तथा सौन्दर्य-माधुर्य-ऐश्वर्यादि अचिन्त्यानन्त-कल्याणगुणगणों का वर्णन कोटि-कोटि जन्मों में ब्रह्मा, शेष, शारदा भी नहीं कर सकते- मेरा तो यह अपने मन तथा ‘निज गिरा पावन करन हित’ उनके गुणों का किंचित् स्मरण मात्र है। इसमें भी उनकी कृपा ही कारण है। मेरी निस्सीम नीचता और अधमता का पार नहीं और उन सहज कृपालु की कृपा का पार नहीं। अस्तु, हमारा यह विश्व, परम पावन भारत भूमि, द्वारकापुरी, कुरुक्षेत्र का रणांगण, मथुरामण्डल, व्रजभूमि, गोकुल, नन्दालय अति धन्य हैं, स्वयं भगवान ने प्रकट होकर विविध प्रकार की दिव्य और आदर्श लीलाएँ कीं। लोकपितामह ब्रह्माजी के शब्दों में हम भी प्रति प्रणाम और प्रार्थना करें-
बोलो व्रजबाल नन्द-यशोदालाल की जय! |
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