श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
यह अवतार स्वयं अक्षर ब्रह्म, भगवान विष्णु का भी होता है और किसी शुद्ध सत्त्व को आधार बनाकर भी होता है। भगवान के इस अवतार को श्री शंकराचार्य-सरीखे अद्वैवतवादी महापुरुषों ने भी मुक्तकण्ठ से स्वीकार किया है। जो लोग यह कहते हैं कि ‘कोई मनुष्य अपनी उन्नति करते-करते जब महान् गुणों से सम्पन्न होकर उच्च स्तर पर पहुँच जाता है, तब उसी को भगवान का अवतार कहते हैं, उनका यह कहना ठीक नहीं है। यह तो ‘आरोहण’ है- चढ़ना है, अवतरण उतरना नहीं। भगवान तो अवतरित होते हैं। ये अवतार अनेक प्रकार के होते हैं- लीलावतार, पुरुषावतार, अंशावतार, कलावतार, गणावतार, युगावतार, आवेशावतार विभवावतार और अर्चावतार आदि। सभी अवतारों में लीला के लिये अवतरण होता है, अतः सभी को अवतार कहा जाता है और इन अवतारों में कोई छोटा-बड़ा नहीं है। जब सबका भगवान से प्रादुर्भाव है, तब सभी पूर्ण हैं। शास्त्र कहते हैं-
ये सभी नित्य हैं। शाश्वत हैं, इनके हानोपादानरहित अप्राकृत देह हैं, प्रकृति से उत्पन्न नहीं हैं। ये जन्म-मृत्यु आदि सर्वदोषों से रहित, सर्वगुण सम्पन्न, पूर्ण और ज्ञानस्वरूप, परमानन्दसंदोह है।’ इनमें देश, काल या शक्ति के कारण किसी प्रकार का तारतम्य नहीं है। शक्ति के प्रकाश की नयूनाधिकता से ही इनमें तारतम्य माना जाता है। एक बलवान् पुरुष में पाँच मन बोझ उठाने की शक्ति है, पर जहाँ एक छटाँक वजन ही उठाना है, वहाँ एक छटाँक वजन उठाने पर यह नहीं कहा जा सकता कि उसमें पाँच मन उठाने की शक्ति नहीं हैं। शक्ति तो पूरी है, पर वहाँ शक्ति के प्रकाश का प्रयोजन नहीं है। |
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