श्रीराधिके! वह शुभ सौभाग्य-क्षण कब होगा, जब तुम्हारे नाम-सुधा-रस का आस्वादन करने के लिये मेरी जिह्वा विह्वल हो जायगी, जब तुम्हारे चरण चिह्नों से अंकित वृन्दारण्य की वीथियों में मेरे पैर भ्रमण करेंगे— मेरे सारे अंग उसमें लोट-लोटकर कृतार्थ होंगे, जब मेरे हाथ केवल तुम्हारी ही सेवा में नियुक्त रहेंगे, मेरा हृदय तुम्हारे चरण-पद्मों के ध्यान में लगा रहेगा और तुम्हारे इन भावोत्सवों के परिणामरूप मुझे तुम्हारे प्राणनाथ के चरणों की रति प्राप्त होगी— मैं तुम्हारे ही सुख-साधन के लिये तुम्हारे प्राणनाथ की प्रणयिनी बनने का अधिकार प्राप्त करूँगा—