श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीभगवान ने कहा- “महर्षे! मेरे विषय में लोगों को भिन्न-भिन्न धारणाएँ हैं। कोई मुझे ‘प्रकृति’ कहते हैं, कोई ‘पुरुष’। कोई ईश्वर मानते हैं, कोई धर्म। किन्हीं-किन्हीं के मत में मैं सर्वथा भय रहित मोक्ष स्वरूप हूँ। कोई भाव (सत्तास्वरूप) मानते हैं और कोई-कोई कल्याणमय सदा शिव बतलाते हैं। इसी प्रकार दूसरे लोग मुझे वेदान्त-प्रतिपादित अद्वितीय सनातन-ब्रह्म मानते हैं। किंतु वास्तव में जो सत्ता स्वरूप और निर्विकार हैं, सत्-चित् और आनन्द ही जिसका विग्रह है तथा वेदों में जिसका रहस्य छिपा हुआ है, अपना वह पारमार्थिक स्वरूप मैं आज तुम्हारे सामने प्रकट करता हूँ; देखो!” भगवान के इतना कहते ही श्रीव्यासजी को एक बालक के दर्शन हुए, जिसके शरीर की कान्ति नीलमेघ के समान श्याम थी। वह गोपकन्याओं और ग्वाल-बालों से घिरकर हँस रहा था। वे भगवान श्यामसुन्दर थे, जो पीत वस्त्र धारण किये कदम्ब की जड़पर बैठे हुए थे। उनकी झाँकी अद्भुत थी। उनके साथ ही नूतन पल्लवों से अलंकृत ‘वृन्दावन’ नाम का वन भी दृष्टिगोचर हुआ। इसके बाद नील कमल की आभा धारण करने वाली कलिन्द कन्या यमुना के दर्शन हुए। फिर गोवर्धन पर्वत पर दृष्टि पड़ी, जिसे श्रीकृष्ण तथा बलराम ने इन्द्र का घमंड चूर्ण करने के लिये अपने हाथों पर उठाया था। वह पर्वत गौओं तथा गोपों को बहुत सुख देने वाला है। गोपाल श्रीकृष्ण रमणियों के साथ बैठकर बड़ी प्रसन्नता के साथ वेणु बजा रहे थे, उनके शरीर पर सब प्रकार के आभूषण शोभा पा रहे थे। उनका दर्शन करके मुनि को बड़ा हर्ष हुआ। तब वृन्दावन में विचरने वाले भगवान ने स्वयं उनसे कहा- |
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- ↑ पद्भ० पाताल०
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