श्रीकृष्णांक
अद्भुतकर्मी श्रीकृष्ण
रातभर गोपियों के विलाप में बीत गयी। सबेरा होते ही संध्या वन्दन करके अक्रूरजी ने रथ हांक दिया। थोड़ी देर में श्रीकृष्ण बलदेव का रथ यमुना के किनारे पहुँच गया। वहाँ दोनों भाइयों ने स्नान किया और मीठा जल पीकर वृक्षों की छाया में छाया में खड़े रथ पर वे बैठ गये। अक्रूरजी स्नान करके जल में घुसकर गायत्री का जप करने लगे। जप करते-करते उन्होंने देखा कि उसके अन्दर श्रीकृष्ण-बलदेव दोनों भाई विराजमान हैं, अक्रूरजी ने सोचा कि “वे दोनों तो रथ पर थे, यहाँ कैसे आ गये ? यों विचारकर अक्रूरजी ने जल से बाहर निकलकर रथ की ओर देखा तो उन्हें दोनों भाई रथ में बैठे दिखायी दिये। अक्रूरजी अचरज में डूब गये, उन्होंने सोचा कि ‘मैंने उन्हें जो जल में देखा सो क्या मेरा भ्रम था ? यों विचारकर उन्होंने फिर जल में गोता लगाया, इस बार वे देखते हैं कि जल में सिद्ध, सर्प और असुरों द्वारा सेवित श्रीअनंत शेषनाग जी विराजमान हैं, उनके हजार मस्तक हैं, सब पर मुकुट हैं, कमल की नाल के समान श्वेत शरीर पर नीलामबर सुशोभित है। उन श्रीशेषजी की गोद में पीताम्बरधारी, नव-नील- नीरद- वर्ण चतुर्भुज भगवान विराजमान हैं। देवता, ॠषि, किन्नर और सभी देवियां उनकी सेवा कर रहीं हैं। अक्रूरजी को यह अपूर्ण दृश्य देखकर बड़ा ही आनंद हुआ, प्रेम के कारण उनका शरीर पुलकित हो गया। नेत्रों में आंसु भर आये। भक्तिभाव से उनका हृदय गद्गद हो गया। श्रीकृष्ण का प्रभाव उन्होंने जान लिया, वे हाथ जाड़कर भगवान की स्तुति करने लगे। अक्रूरजी स्तुति कर ही रहे थे कि श्रीकृष्ण जल के अन्दर अन्तर्धान हो गये- स्तुवतस्तस्य भगवान् दर्शयित्वा जले वपु: । भगवान श्रीकृष्ण ने स्तुति करते हुए अक्रूरजी को जल के अंदर अपना अद्भुत (चतुर्भुज) रुप दिखाकर पुन: उसको वैसे ही छिपा लिया, जैसे नट अपनी बाजीगरी दिखाकर फिर उसे गायब कर देता है। अक्रूरजी जल में भगवान को न देखकर बाहर आये, तब हृषिकेश भगवान श्रीकृष्ण ने मुस्काराते हुए उनसे पूछा- ‘चाचाजी ! आप अचरज में कैसे डूब रहे हैं, क्या आज आपने कोई अद्भुत बात देखी है ? अक्रूर ने कहा- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भा. 10।41।1
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