श्रीकृष्णांक
अद्भुतकर्मी श्रीकृष्ण
अद्भुतानीह यावन्ति भूमौ वियति वा जले । ‘ हे स्वामिन् ! पृथ्वी, आकाश और जल में जो कुछ अद्भुत है सो सब आप विश्व रुप में ही प्रतिष्ठित है। मैंने जब आपको तत्व से देख लिया तब कौन सी अद्भुत वस्तु देखनी शेष रह गयी ? हे ब्रह्मान् ! पृथिवी, आकाश और जल की सभी वस्तुएं आप में हैं। आपके अतिरिक्त संसार में और क्या अद्भुत है, जो मैं देखता ? इतना कहकर अक्रूरजी ने रथ हांक दिया। भगवान मथुराजी पहुँचे, वहाँ राजमार्ग पर कंस के शरीर पर अंगराग लगाने वाली कुब्जा को चंदन लेकर जाते देखा। भगवान ने उस पर कृपाकर उसे सीधा करना चाहा। अनन्तर श्रीहरि ने अपने दोनों पैरों से कुब्जा के दोनो पैंरो को आगे से दबाकर, उसकी ठोड़ी पर अपनी दो अंगुलियां रखकर एक झटका दिया। झटका लगते ही उसका जन्म से टेढ़ा शरीर सीधा हो गया। इसके बाद कंस के शस्त्रागार में जाकर रक्षकर को गिरा कर विशाल इन्द्र धनुष को अनायास ही तोड़ डाला और मुष्टिक, चाणूर आदि पहलवानों तथा कुबलयापीड़ मतवाले हाथी को मारकर अत्याचारी कंस का वध कर दिया। उस कंस की राजसभा में श्रीकृष्ण सबको भिन्न-भिन्न रुपों में दीख पड़े थे। वे मल्लों को वज्र के समान, मनुष्यों को सर्वश्रेष्ठ पुरुष, स्त्रियों को साक्षात कामदेव, गोपों को स्वजन, दुष्ट राजाओ को दण्डदाता, माता-पिता को बालक, कंस को प्रत्यक्ष काल, अज्ञानियों को जड़रुप, योगियों को परब्रह्मा और यादवों को परम देवता स्परुप दिखायी दिये। (श्रीमद्भा0 10।42।43 में देखिये) पिता-माता श्री वसुदेव देवकीजी को अपने विनम्र बर्ताव से प्रसन्न करते हुए भगवान ने कहा ‘चतुर्वर्ग फल की प्राप्ति कराने वाला मनुष्य शरीर जिन माता-पिता से उत्पन्न हुआ और जिनके द्वारा पाला गया, उन माता-पिता के ॠण से सौ वर्ष तक सेवा करने पर भी मनुष्य उॠण नहीं हो सकता। यस्तयोरात्मज: कल्प आत्मना च धनेन च । जो समर्थ पुत्र तन, मन, धन से माता-पिता की सेवा नहीं करते, मरने पर यमराज के दूत उन कुपुत्रों को उन्हीं का मांस खिलाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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