कृष्णांक
श्रीकृष्णलीला में माधुर्य रस
श्रीकृष्ण के कृष् का अर्थ नित्य और ण का अर्थ आनन्द (रस) होता है। श्रुतियां भी श्रीकृष्ण को सदा रसरूप ही प्रतिपादन करती हैं। ‘रसो वै स:’ श्रीकृष्ण के नाम, रूप एवं चरित माधुर्यमय हैं। प्रधान रस पांच माने गये हैं – शान्त, दास्य, सख्य, वात्सल्य, माधुर्य। इन पांचों रसों के परस्पर सम्बन्ध में यह उदाहरण ठीक मालूम होता है – नयन सलौन अधर मधु कहि रहीम बड कौन । परस्पर सम्बन्ध होते हुए भी पहले चार रसों का समावेश माधुर्य में ही होता है। श्रीकृष्ण निष्ठा, तृष्णा का त्याग ये दो गुण हैं। ईश्वर में सम्पूर्ण ऐश्वर्य, प्रभु की प्रभुता, दास्य के इन दो गुणों में शान्ति का मेल हो जाने से भाव की प्राप्ति होती है। प्रेम की पहली दशा का नाम ही भाव है। (श्रीरूपगोस्वामी)। शान्त, दास्य के गुण, प्रभु का मान एवं सेवा का भाव, मैत्री में विश्वासमय हो जाता है। सख्य में विश्वास ही प्रधान है। इस रस में श्रीकृष्ण के प्रति भक्त की ममता हो जाती है और भगवान भी भक्त के साथ क्रीडा-कौतुक करने लगते हैं। अधिक स्वाद चटपटी पकौरी लै मुख खोल कन्हाई । इसमें प्रभु के प्रति निस्संकोच, प्रेममय सख्यभाव का कितना सुन्दर भाव है ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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